Friday, 6 July 2018

शरीर के तिल से जाने अपने बारे में



शरीर के तिल से जाने अपने बारे में -


1. यदि चेहरे के दाहिने भाग में काला अथवा लाल तिल हो तो व्यक्ति सम्पन्नता और समृद्धि से परिपूर्ण रहता है।
2.. यदि होंठ के नीचे तिल का निशान हो तो यह अशुभ फलदायी होता है। ऐसे व्यक्ति जीवन पर्यंत निर्धन रह सकते हैं जबकि होंठ के ऊपर तिल का निशान अत्यंत श्रेष्ठ है। ऐसा व्यक्ति सदैव सम्पन्न रहता है।
3. यदि बायें कान के ऊपरी भाग पर तिल हो तो वह जातक दीर्घायु होता है परन्तु वह दुबला पतला होता है।
4. नासिका के मध्य भाग में स्थित तिल व्यक्ति को अनेक यात्राएं देता है  परन्तु वह अपने स्वभाव से बहुत ही बुरा होता है।
5. ललाट के दाहिने ओर कनपटी पर तिल होना एक शुभ संकेत है। ऐसे जातक का जीवन सुखमय व्यतीत होता है।
6. बायें गाल पर तिल का होना गृहस्थी के लिए अच्छा है लेकिन ऐसे लोगों के पास ज्यादा धन नहीं होता है।
7. जिस व्यक्ति की ठोड़ी पर तिल हो तो वह व्यक्ति स्वार्थी होता है।
8. जब व्यक्ति के दाहिने कान के ऊपरी भाग में तिल हो तो वह जातक अपनी युवावस्था में ही सफलता प्राप्त कर लेता है।
9. यदि दाहिने कान के पास तिल हो तो ऐसा व्यक्ति साहसी होता है।
10. जिस व्यक्ति के दाहिने ओर की भौंह के पास तिल हो तो उस व्यक्ति की आँखें खराब हो सकती है।
11. यदि दाहिने गाल पर तिल हो तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान और सदेव सम्पन्न रहने वाला होता है।
12. गर्दन का तिल व्यक्ति को बुद्धिमान और धन संचय करने वाला बनाता है।
13. दाहिनी आँख के नीचे तिल हो तो वह जातक समृद्ध और सुखी होता है।
14. यदि नासिका के बायीं ओर तिल हो तो व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यंत मेहनत करनी पड़ती है।
15. यदि व्यक्ति के बांयी नेत्र की भौंह के पास तिल हो तो व्यक्ति एकान्त में रहने वाला और सामान्य जीवन निर्वाह करने वाला होता है।
16. यदि तिल दोनों भौहों के बीच में हो तो व्यक्ति धार्मिक और उदार हृदय वाला होता है।
17. यदि किसी व्यक्ति की दाहिनी हथेली पर लाल तिल हो तो व्यक्ति अत्यंत ही धनवान होता है।
18. यदि किसी व्यक्ति के बायें हाथ की हथेली में तिल हो तो वह सोच समझ कर व्यय करने वाला होता है।
19. जिस प्रकार हथेली पर रेखाएँ होती है उसी प्रकार हमारे मुख पर भी कई रेखाएँ होती है। इन रेखाओं पर भी तिल होने के अपने अपने प्रभाव हैं। इन तिलों की बात हम तब करेंगे जब हम इन ललाट रेखाओं के बारे में अध्ययन कर लेंगे।

आशा है कि आपको लेख पसंद आया होगा।

फलकथन करने से पूर्व विचार करने योग्य बातें



फलकथन करने से पूर्व विचार करने योग्य बातें -

1. किसी भी ग्रह की महादशा में उसी ग्रह की अन्तर्दशा अनुकूल फल नहीं देती।जैसे यदि शुक्र की महादशा है और शुक्र की ही अंतर्दशा है तो वह समय अच्छा साबित नहीं होगा चाहे शुक्र कारक ग्रह ही क्यों न हो।

2. योगकारक ग्रह की महादशा में पापी या मारक ग्रह की अन्तर्दशा आने पर प्रारंभ में शुभ फल तथा उत्तरार्द्ध में अशुभ फल देने लगता है।जैसे कुम्भ लग्न के लिए शुक्र योगकारक ग्रह है और यदि शुक्र की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा आती है तो शुरुआत का समय शुभ जबकि अंत समय अशुभ फल देने वाला होता है।

3. अकारक ग्रह की महादशा में कारक ग्रह की अन्तर्दशा आने पर प्रारंभ में अशुभ तथा उत्तरार्द्ध में शुभ फल की प्राप्ति होती है।जैसे यदि धनु लग्न में जब शुक्र की महादशा में बृहस्पति का अंतर आयेगा तब प्रारंभ में अशुभ और उतरार्द्ध में शुभ फलदायी होगा।

4. भाग्य स्थान का स्वामी यदि भाग्य भाव में बैठा हो और उस पर गुरु की दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति प्रबल भाग्यशाली माना जाता है।जैसे यदि धनु लग्न में यदि सूर्य नवम स्थान में हो और बृहस्पति पंचम स्थान में हो तो ऊपरी कथन घटित होता है।

5. सूर्य के समीप निम्न अंशों तक जाने पर ग्रह अस्त हो जाते हैं, (चन्द्र-१२ अंश, मंगल-१७ अंश, बुध-१३ अंश, गुरु-११ अंश, शुक्र-९ अंश, शनि-१५ अंश) फलस्वरूप ऐसे ग्रहों का फल शून्य होता है। अस्त ग्रह जिन भावों के अधिपति होते हैं उन भावों का फल शून्य ही समझना चाहिए।

6. सूर्य उच्च अथवा स्वराशि का होकर यदि ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति अत्यंत प्रभावशाली तथा पूर्ण प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्तित्व होता है।अर्थात मिथुन लग्न और तुला में ही यह स्थिति घटित हो सकती है।

7. सूर्य और चन्द्र को छोड़कर यदि कोई ग्रह अपनी राशि में बैठा हो तो वह अपनी दूसरी राशि के प्रभाव को बहुत अधिक बढ़ा देता है।

8. जिन भावों में शुभ ग्रह बैठे हों या जिन भावों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वे भाव शुभ फल देने में सहायक होते हैं।

9. एक ग्रह दो भावों का अधिपति होता है। ऐसी स्थिति में वह ग्रह अपनी दशा में लग्न से गिनने पर जो राशि पहले आएगी उसका फल वह पहले प्रदान करेगा।जैसे यदि सिंह लग्न में बृहस्पति दो भावों का अधिपति है अतः यहाँ बृहस्पति पहले पंचम भाव का फल पहले प्रदान करेगा।

10. दो केन्द्रों का स्वामी ग्रह यदि त्रिकोण के स्वामी के साथ बैठे हैं तो उसे केंद्रत्व दोष नहीं लगता और वह शुभ फल देने में सहायक हो जाता है। जैसे यदि धनु लग्न में बुध यदि सूर्य अथवा मंगल के साथ होने पर बुध को केंद्राधिपति दोष नहीं लगता।

11. अपने भाव से केन्द्र व त्रिकोण में पड़ा हुआ ग्रह शुभ होता है।जैसे कुंभ लग्न में यदि मंगल षष्ठ भाव कर्क राशि में स्थित हो तो वह उसकी एक राशि से केन्द्र में तथा एक राशि से त्रिकोण में स्थित है।

12. केंद्र के स्वामी तथा त्रिकोण के स्वामी के संबंध हो तो वे एक दूसरे की दशा में शुभ फल देते हैं। यदि संबंध न हो तो एक की महादशा में जब दूसरे की अंतर्दशा आती है तो अशुभ फल ही प्राप्त होता है।

13. वक्री होने पर ग्रह अधिक बलवान हो जाता है तथा वह ग्रह जन्म-कुंडली में जिस भाव का स्वामी है, उस भाव को विशेष फल प्रदान करता है।यहां उसका प्रभाव चाहे शुभ हो अथवा अशुभ।

14. यदि भावाधिपति उच्च, मूल त्रिकोणी, स्वक्षेत्री अथवा मित्रक्षेत्री हो तो शुभफल करता है।

15. यदि केन्द्र का स्वामी त्रिकोण में बैठा हो या त्रिकोण केंद्र में हो तो वह ग्रह अत्यन्त ही श्रेष्ठ फल देने में समर्थ होता है।

16. त्रिक स्थान (कुंडली के ३, ६, ११वे भाव को त्रिक स्थान कहते हैं) में यदि शुभ ग्रह बैठे हो तो त्रिक स्थान को शुभ फल देते हैं परन्तु स्वयं दूषित हो जाते हैं और अपनी शुभता खो देते हैं।

17. यदि त्रिक स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो त्रिक भावों को पापयुक्त बना देते हैं पर वे ग्रह स्वयं शुभ रहते हैं और अपनी दशा में शुभ फल देते हैं।

18. चाहे अशुभ या पाप ग्रह ही हो, पर यदि वह त्रिकोण भाव में या त्रिकोण भाव का स्वामी होता है तो उसमे शुभता आ जाती है।

19. एक ही त्रिकोण का स्वामी यदि दूसरे त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उसकी शुभता समाप्त हो जाती है और वह विपरीत फल देते है।

20. शनि और राहु विछेदात्मक ग्रह हैं अतः ये दोनों ग्रह जिस भाव में भी होंगे संबंधित फल में विच्छेद करेंगे जैसे अगर ये ग्रह पंचम भाव में हो तो संतान से रिश्ते खराब करवा देते हैं।

21. राहू या केतू जिस भाव में बैठते हैं उस भाव की राशि के स्वामी समान बन जाते हैं तथा जिस ग्रह के साथ बैठते हैं, उस ग्रह के गुण ग्रहण कर लेते हैं।

22. केतु जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है उस ग्रह के प्रभाव को बहुत अधिक बड़ा देता है।

23. लग्न का स्वामी जिस भाव में भी बैठा होता है उस भाव को वह विशेष फल देता है तथा उस भाव की वृद्धि करता है।

24. तीसरे भाव का स्वामी तीसरे में, छठे भाव का स्वामी छठे में या ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो ऐसे ग्रह पापी नहीं रहते अपितु शुभ फल देने लग जाते हैं।

25. चौथे भाव में यदि अकेला शनि हो तो उस व्यक्ति की वृद्धावस्था अत्यंत दुःखमय व्यतीत होती है।परन्तु उसके साथ यदि कोई शुभ ग्रह हो तो यह शुभ फल देने वाला होता है।

26. यदि चौथे भाव का स्वामी पाँचवे भाव में हो और पाँचवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो विशेष फलदायक होता है। इसी प्रकार नवम भाव का स्वामी दशम भाव में बैठा हो तथा दशम भाव का स्वामी नवम भाव में बैठा हो तो विशेष अनुकूलता देने में समर्थ होता है।

27. अकेला गुरु यदि पंचम भाव में हो तो संतान से न्यून सुख प्राप्त होता है या प्रथम पुत्र से मतभेद रहते हैं और यह विद्या को भी नुकसान पहुंचाता है।

28. जिस भाव की जो राशि होती है उस राशि के स्वामी ग्रह को उस भाव का अधिपति या भावेश कहा जाता है। छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी जिन भावों में रहते हैं, उनको बिगाड़ते हैं, किन्तु अपवाद रूप में यदि यह स्वगृही ग्रह हों तो अनिष्ट फल नहीं करते, क्योंकि स्वगृही ग्रह का फल शुभ होता है।

29.यदि सप्तम भाव में अकेला शुक्र हो तो उस व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता और पति-पत्नी में परस्पर अनबन बनी रहती है।

30. अष्टम भाव का स्वामी जहाँ भी बैठेगा उस भाव को कमजोर करेगा।

31. शनि यदि अष्टम भाव में हो तो उस व्यक्ति की आयु लम्बी होती है।

32. अष्टम भाव में प्रत्येक ग्रह कमजोर होता है परन्तु सूर्य या चन्द्रमा अष्टम भाव में हो तो कमजोर नहीं
रहते।

33. आठवें और बारहवें भाव में सभी ग्रह अनिष्टप्रद होते हैं, लेकिन बारहवें घर में शुक्र इसका अपवाद है क्योंकि शुक्र भोग का ग्रह है बारहवां भाव भोग का स्थान है। यदि शुक्र बारहवें भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति अतुलनीय धनवान एवं प्रसिद्ध व्यक्ति होता है।

34. द्वादश भाव का स्वामी जिस भाव में भी बैठता है, उस भाव को हानि पहुँचाता है।

35. दशम भाव में सूर्य और मंगल स्वतः ही बलवान माने गए हैं, इसी प्रकार चतुर्थ भाव में चन्द्र और शुक्र, लग्न में बुध तथा गुरु और सप्तम भाव में शनि स्वतः ही बलवान हो जाते हैं तथा विशेष फल देने में सहायक होते हैं।

36.ग्यारहवें भाव में सभी ग्रह अच्छा फल करते हैं।

37. अपने स्वामी ग्रह से दृष्ट, युत या शुभ ग्रह से दृष्ट भाव बलवान होता है।

38. किस भाव का स्वामी कहाँ स्थित है तथा उस भाव के स्वामी का क्या फल है, यह भी देख लेना चाहिए। यदि कोई ग्रह जिस राशि में है उसी नवमांश में भी हो तो वह वर्गोत्तम ग्रह कहलाता है और ऐसा ग्रह पूर्णतया बलवान है। माना जाता है तथा श्रेष्ठ फल देने में सहायक होता है।

39. जब कोई ग्रह उच्च, स्वक्षेत्री, मूलत्रिकोण, मित्रक्षेत्र पर दृष्टि डालता है वह जिस भाव में स्थित हो उसका विशेष लाभ देता है।

40. सामान्यतः ग्यारहवें भाव में स्थित सभी ग्रह व्यक्ति की आय में वृद्धि करते हैं और यदि यहां पर स्वराशि, मूलत्रिकोण, उच्च का राहु अथवा केतु हो तो यह व्यक्ति के आय में विशेष सफलता देते हैं।

41. साधारणत राहु जिसे शुभ फल देता है उसे केतु अशुभ फल देने वाला होता है और जिसे केतु शुभ फल देता है उसे राहु शुभ फल देता है।

42. राहु जब तृतीय, षष्ठ और अष्ट भाव में हो तो यह शुभ फल देने वाला होता है। परन्तु इसके यहाँ होने से भी कई नुकसान होते हैं। 

Saturday, 16 June 2018

इन ग्रहों का यहाँ बैठना ही राजयोग है



कुछ ग्रह यदि कुंडली में एक निश्चित स्थान पर होते हैं तो वे उस कुंडली के जातक को लाभ देते हैं। इन ग्रहों का यहाँ बैठना ही अपने आप में राजयोग है।
आइए जानते हैं कि कौनसे ग्रह कहाँ अत्यंत शुभ फलदायी होते हैं -

1. सूर्य -
         सूर्य यदि किसी जातक की कुंडली में प्रथम अर्थात् लग्न, नवम अथवा दशम भाव में स्थित है तो यह सूर्य अत्यंत ही लाभदायक हो सकता है। लग्न, नवम और दशम भाव में सूर्य कारक माना जाता है। जब लग्नगत सूर्य हो तो वह जातक को महापराक्रमी राजा के समान बना देता है। माना जाता है कि रावण के लग्न में ही सूर्य सिंह राशि में स्थित था। नवमस्थ सूर्य व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि करता है। केवल सूर्य के नवमस्थ होने से ही व्यक्ति महाभाग्यशाली कहलाता है। दशमभाव गत सूर्य व्यक्ति को राजपद दिलाने में अकेला ही समर्थ होता है। यदि सूर्य दशमभाव से किसी भी प्रकार का संबंध बना ले तो व्यक्ति को राजकार्य तक पहुंचाने के लिए काफ़ी है।




   2. चन्द्र -
           ऐसी बहुत ही कम कुुंडलियाँ होती है जिसमेंं चन्द्र पीड़ित न हो। इस कारण ही शिवजी की पूजा प्रत्येक व्यक्ति को करने की सलाह दी जाती है। चंद्र जब लग्न से चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में हो तो यह चन्द्र की अनुुकूल स्थितियों में से एक है। परन्तु वह अकेला नहीं होना चाहिए। जब चन्द्र चतुर्थ भावगत होता है तो वह व्यक्ति को सुख समृद्धि देने वााला होता है परन्तु यह उस समय नुकसानदेह हो सकता है जब चन्द्र पीड़ित हो। इस समय व्यक्ति को सुख तो मिलता है पर वह उसेे खराब मान लेता है। जब चन्द्र दशमस्थ होता है तो वह अपनी सोलह कलाओं के कारण जातक को सभी कलाओं में कुशल बनाता है। परन्तु यदि चन्द्र पीड़ित है तो कार्य क्षेत्र में भटकाव ला देता है।


  3. मंगल -
            मंगल जब लग्न, षष्ठ अथवा दशम भाव में हो तो यह भी राजयोग के समान फल देेने वाला होता है। लग्न गत और दशम भाव गत मंगल व्यक्ति को राज कार्यों में ले जाता है। षष्ठ भाव गत मंगल के अनेक लाभ हैं तो नुकसान भी है परन्तु यह यहाँ विशेष रूप से कारक होता है। षष्ट भाव में स्थित मंगल व्यक्ति को शत्रुहन्ता बनाता है। परन्तु यह मामा पक्ष के लिए नुुकसानदेह होता है। षष्ट भाव गत मंंगल का जातक का किसी पर क्रोध करना दूूसरे के लिए नुकसानदेह हो सकता है।


 4. बुध -
         बुध यदि लग्न से किसी भी केन्द्र में स्थित हो तो यह बुध की काफी अच्छी स्थिति है। जब बुध लग्नगत होता है तो वह जातक को तीक्ष्ण बुुद्धि बनाता है। इसके अतिरिक्त बुुध का चतुर्थ भाव में होना भी अपने आप में ही राजयोग है। बुध जब द्वितीय भाव में स्थित होताा है तो वह व्यक्ति प्रसिद्ध नेता, वक्ता, गायक और अभिनेता बन सकताा है। परन्तु यदि बुध के कई लाभ हैं तो नुकसान भी। हम इस पर अगामी किसी लेख में बतायेंगे।




5. बृहस्पति - 
               जब बृहस्पति किसी भी केंद्र में स्थित होता है तो वह कुंडली के समस्त दोषों को मिटाने के लिए अकेला ही समर्थ होता है। इसके अतिरिक्त जब बृहस्पति षष्ठ भाव में स्थित होता है तो यह अत्यंत श्रेष्ठ स्थिति है। बृहस्पति षष्ठ भाव में महान नायक अमिताभ बच्चन, विराट कोहली जैसे महान व्यक्तियों की कुंडली में देखने को मिला है। 




 6. शुक्र -  
         शुक्र विशेेषतया जब द्वादश भाव में स्थित हो तो यह बहुत ही अच्छी स्थिति है। बाहरवाँ भाव भोग का भाव होता है तथा शुक्र भोग का ही कारक है अतः शुक्र का इस भाव में बैठना व्यक्ति को अतुलित संपदा दे सकता है। शुक्र यदि किसी भी केेंद्र में स्थित है तो यह भी अत्यंत श्रेष्ठ होता है विशेष रुप से जब शुक्र सप्तम भाव गत हो परन्तु अकेला नहीं होना चाहिए।

शेष ग्रहों की चर्चा हम अगले लेख में करेंगे। 

साधारणत यहाँ ग्रहों के जिन जिन भावों का उल्लेख किया गया है वे वहाँ पर अकेले होने पर कुछ नुकसान देते हैं। 

आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।  

धन्यवाद।। 

Thursday, 14 June 2018

सूर्य का मिथुन में गोचर - इन राशियों को मिलेगा लाभ



ग्रहों के राजा कहे जाने वाले सूर्य अपनी राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। जिसके केवल सूर्य अकेला ही कुंडली में अच्छा हो वह उस जातक को कभी कष्ट नहीं होने देता। बड़ी बड़ी हस्तियों की कुंडली में सूर्य स्वराशि अथवा उच्च का ही पाया जाता है। यह उनकी सफलता के लिए एक कारण है। 

सूर्य स्वयं राजा है और जिसके ऊपर इनकी कृपा कटाक्ष होती है वे उसे भी राजा के समान बना देते हैं। यही कारण है कि आपको अर्घ्य देने के लिए कहा जाता है, ताकि आप भी उनके कृपा पात्र बन सकें। नहीं तो प्रत्येक व्यक्ति को अन्य ग्रहों की पूजा नहीं बताई जाती। 

सूर्य 15 जून को मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। इस गोचर से जिन राशियों को लाभ मिलता हुआ प्रतीत हो रहा है हम उनका वर्णन कर रहे हैं। परन्तु इसके लिए सूर्य की आपकी जन्म कुंडली में स्थिति काफी प्रभावित करेगी। परन्तु इन राशियों को लाभ अनुभव होने की पूर्ण संभावना है।  

आइए जानते हैं कि किन राशियों को इस गोचर से लाभ मिलेगा -  




1. मेष राशि -  
              सूर्य के इस गोचर से मेष राशि के जातकों को भरपूर लाभ मिलने की संभावना है। मेष राशि के जातकों का प्रत्येक किया गया कार्य सफल होगा। भाग्य का भरपूर फायदा मिलेगा। नया उद्यम शुरू करने के लिए अनुकूल समय है। विद्यार्थियों के लिए  यह गोचर शुभ संकेत दे रहा है, उन्हें भी सफलता मिलने की पूर्ण संभावना है। किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए भी गोचर शुभ संकेत दे रहा है सफलता मिल सकती है। 





2. सिंह राशि - 
                 सिंह राशि के जातकों के लिए सूर्य का यह गोचर शुभ फलदायी है। आपकी प्रत्येक मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती है। आपको भी यदि किसी नए कार्य को प्रारम्भ करना है तो यह उत्तम समय है।विद्यार्थियों के लिए भी यह बहुत ही शुभ फल देने वाला है। आपको बड़े स्तर के अधिकारी के लिए अवश्य आवेदन करना चाहिए आपके सफल होने की संभावना है।






3. कन्या राशि - 
                 इन राशियों में से सर्वाधिक लाभ कन्या राशि के जातकों को होगा। आपको प्रत्येक वस्तु के मिलनके  योग बन रहे हैं। दशम भाव से गोचर करता हुआ सूर्य आपको बड़ा पद दिलाने वालाा है। आपका ओहदा बड सकता है। प्रत्येक स्थान में सम्मान मिलेगा। जमीन जायदाद मिलने के योग बन रहे हैं। सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे युवकों को भी लाभ मिल सकता है।




 
4. मकर राशि - 
                मकर राशि के जातकों के लिए भी सूर्य का यह गोचर शुभ फलदायी है। आपको भी प्रत्येक कार्य में सफलता मिल सकती है। आपके शत्रु पराजित होंगे और आप इस गोचरकाल में स्वस्थ रह सकते हैं। परंतु आपको कई बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि कुछ दिन विशेष रूप से कटु वाक्यों का प्रयोग न करें और चर्म रोग होने की संभावना है अतः लापरवाही न बरतें।





सूर्य देव को ज्योतिष शास्त्र में पिता का स्थान प्राप्त है और पिता कभी भी नुकसान नहीं करता अतः भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। सूर्य को अर्घ्य अवश्य रुप से देना चाहिए।


आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।

धन्यवाद।



Wednesday, 13 June 2018

अस्त ग्रह



क्या आपने अस्त ग्रह के बारे में सुना है? अगर सुना भी है तो आपके मन में अनेक भ्रांति होगी। आज हम आपकी इन भ्रांतियों को दूर करेंगे।

आइए जानते हैं अस्त ग्रहों के बारे में -

क्या होते हैं अस्त ग्रह - 

जब कोई ग्रह सूर्य से एक निश्चित दूरी पर स्थित होता है तब वह ग्रह अस्त माना जाता है। इसमें प्रत्येक ग्रह की दूरी निश्चित है। चन्द्र 12 अंश, मंगल 17 अंश, बुध 13 अंश, बृहस्पति 11 अंश, शुक्र 9 अंश, शनि 15 अंश की दूरी तक यदि सूर्य के निकट हो तो सूर्य इन्हें अस्त कर देता है।

क्या अस्त ग्रह प्रभावहीन हैं-

सामान्य रूप से अस्त ग्रहों को प्रभावहीन माना जाता है परन्तु ऐसा नहीं है। ये प्रभाव कम देते हैं परन्तु प्रभावहीन नहीं होते। यह अपनी दशाओं में पूर्ण रूप से प्रभावी होते हैं। यहाँ दशा का अर्थ महादशा से प्राणदशा तक है।


क्या आपका लग्नेश अथवा भाग्येश अस्त है -

कुछ व्यक्ति मानते हैं कि यदि आपके कारक ग्रह अस्त हों तो यह नुकसानदेह है,परंतु ऐसा नहीं है। यदि लग्नेश सूर्य के साथ आता है और यह अस्त हो जाता है तो यह एक उच्च कोटि का राजयोग है।

विशेष - राहु-केतु छाया ग्रह हैं अतः ये सूर्य के साथ आने पर अस्त नहीं होते बल्कि सूर्य को ग्रहण लगाा देते हैं।

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धन्यवाद।। 

Monday, 11 June 2018

बुध का राशि परिवर्तन - इन छह राशियों पर होगी धन वर्षा
















बुध दिनांक 10 जून 2018 को मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। गोचर के आधार पर ये राशियाँ इसके लाभ का अनुभव कर सकती है।  


आइए जानते हैं वे कौनसी राशियाँ है जिनके फायदा होने की संभावना है -





वृषभ राशि - 
             बुध का  यह राशि परिवर्तन वृषभ राशि के जातकों के लिए खुशियों  की सौगात लाने वाला है।वृषभ राशि के जातकों को इस गोचर धन लाभ की संभावना है।आपका कुटुंब में मान सम्मान बढेेगा। विद्यार्थियों को भी सफलता मिलने की उम्मीद है। वह प्रत्येक व्यक्ति जो कला क्षेत्र में है उसे भी फायदा होगा।






सिंह राशि - 
             सिंह राशि के लिए भी बुध का गोचर फायदेेमंद साबित हो सकता है। बुध इस रााशि के जातकों की प्रत्येक मनोकामनाएं पूर्ण कर सकता है। आय के साधनों में वृृृद्धि की भी संंभावना है। अपने बडों का भी पूरा सहयोग मिलेगा। धन लाभ की स्थिति भी बन रही है।







कन्या राशि - 
            इस गोचर से कन्या राशि का स्वामी बुध स्वराशि का दशम भाव से गोचर करेगाा, जो कि कन्या राशि के जातकों के लिए अत्यंत ही शुभ फलदायी है।  कन्या राशि के जातकों को अपने कार्य क्षेत्र में सफलता मिलेगी और आपकी बुद्धि इस काल में आपका पूरा सहयोग करेगी, आपको लाभ मिलनेे की प्रबल संभावना है।









वृश्चिक राशि - 
              वृश्चिक राशि के जातकों के लिए भी यह गोचर शुुभ साबित हो सकता है। बुध इस काल में इन्हें भरपूर धन लाभ देगा। इनकी वाणी मेंं निखार आएगा और ये अपनी वाणी की सहायता से सभी कार्यों को करवाने मेंं सफल रहेंगे।






मकर राशि - 
             मकर राशि में षष्ठ भाव से गोचर करता बुध इस राशि के जातकों को भी शुभ परिणाम देगा। आपके प्रत्येक काम बनते चले जायेंगे। भाग्य का पूरा सहयोग मिलेगा। चर्म रोग होने की संभावना है।







  

मीन राशि -
            मीन राशि के अनुसार चतुर्थ भाव से गोचर करता बुध इन्हें सुख प्रदान  करने वाला है। जमीन जायदाद में लाभ की संभावना है।माता का भरपूर साथ मिलेगा। वैवाहिक जीवन में भी सुखद अनुभूति होगी।




यह गोचर फल केवल चंद्र कुंडली के अनुसार है। लग्न कुंडली और इसमें बुध की स्थिति इसे पूर्ण रूप से प्रभावित करेगी । 

आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।

धन्यवाद।। 

Sunday, 10 June 2018

क्यों नहीं मिल रहा है राजयोग का फल,लाभ लेने के लिए क्या करें? भाग 2




हमने पिछले लेख में जाना कि क्यों आपको राजयोग का लाभ नहीं मिल रहा है। इस लेख में हम राजयोगों का लाभ उठाने के लिए क्या करें, यह जानेंगे।

यह लेख समझने के लिए आपको सर्वप्रथम हमारा इसका प्रथम भाग अवश्य देखें - https://arastrology.blogspot.com/2018/06/1.html?

आइए जानते हैं आप राजयोगों का लाभ उठाने के लिए क्या करें -

1. सर्वप्रथम आपको अपने लग्न और लग्नेश को बली बनाएं। लग्नेश और लग्न को बली बनाने के लिए आप उस लग्नेश का रत्न धारण कर सकते हैं परन्तु कुछ परिस्थितियों में ग्रह का रत्न धारण नहीं किया जा सकता जैसे यदि लग्नेश 6,8,12 भाव में है। इस परिस्थिति में आप उन ग्रहों के रत्न नहीं बल्कि उनकी धातुओं को धारण करें।

सभी ग्रहों की धातुएं -

1. सूर्य - तांबा अथवा सोना, अनामिका में।
2. चंद्र - चांदी, कनिष्ठा में।
3. मंगल - तांबा, तर्जनी अथवा कनिष्ठा में।
4. बुध -  कांसा, कनिष्ठा में।
5. गुरु - सोना, तर्जनी में।
6. शुक्र - चांदी, तर्जनी में।
7. शनि - लोहा, मध्यमा में।
8. राहु - केतु - अष्टधातु, मध्यमा में।

अगर आप नहीं जानते हैं कि आपको कौनसी धातु धारण करनी है तो -

1. आप कनिष्ठा में चांदी धारण करें।







कुछ सरल नियम है -  

1. लग्नेश के अधिपति की आराधना अवश्य करें।
2. भगवान शंकर को जल अर्पित करें।
3. भगवान सूर्य की आराधना अवश्य करें।

अगर आपकी कुंडली में एक ग्रह जो लग्नेश है अथवा कारक ग्रह है जो कम से कम दो राजयोग का निर्माण करता है और यदि लग्नेश एक भी निर्माण राजयोग का निर्माण करता है तो उसका रत्न धारण करने से आपको लाभ मिल सकता है।  


आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। 

धन्यवाद। 

शरीर के तिल से जाने अपने बारे में

शरीर के तिल से जाने अपने बारे में - 1. यदि चेहरे के दाहिने भाग में काला अथवा लाल तिल हो तो व्यक्ति सम्पन्नता और समृद्धि से परिपू...