Sunday, 29 April 2018

नवग्रह

जैसा कि हम अपने पिछले लेख में बता चुके है कि प्रत्येक राशियों का स्वामित्व किसी ग्रह के अन्तर्गत आता हैं। इस लेख में हम इन नवग्रहों के बारे में जानेंगे।
1. सूर्य -
            ये ग्रहों के राजा कहे जाते हैं। ये सबसे कम पापी ग्रह हैं। इनके पास सबसे ज्यादा नैसर्गिक बल है। मेरूदंड, आत्मा, नेत्र, ह्रदय को ये प्रभावित करते हैं। सूर्य इन अवयवों के रोग प्रदान करते हैं। 
सूर्य का स्वभाव है - लाल रंग, क्षत्रिय प्रकृति, सत्वगुण प्रधान,अग्नि तत्व,  पित्त प्रकृति आदि।
सूर्य लग्न से दशम भाव में दिग्बली तथा मकर राशि से छह राशियों तक चेष्टाबली रहता है।
विशेष -
      
1. अब शायद आप समझ ही गए होंगे कि मकर संक्रांति विशेष क्यों होती है?
2. अब आप यह भी समझ गए हैं कि सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है?
3. सूर्य नमस्कार का कारण भी आप समझ ही गए होंगे।
2. चंद्र -
          ये शुभ ग्रहों में से एक है। यह मन, चित विकार, उदर, श्लेषमा, माता, मष्तिष्क आदि का स्वामित्व रखता है। जलीय रोग, मस्तिष्क रोग, पीनस रोग आदि का कारक ग्रह है।
यह चतुर्थ भाव में भावबली होता है तथा मकर राशि से छह राशि तक चेष्टाबली होता है
विशेष -
1. कृष्णपक्ष की षष्ठी से शुक्लपक्ष के दशमी तक चंद्र क्षीण तथा पापी ग्रह माना गया है। यह शुभ शुक्लपक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक माना जाता है।
3. मंगल -
          ये ग्रहों के सेनापति कहे गये हैं और ये एक पापी ग्रह हैं। इनके द्वारा धैर्य, छोटे भाई बहनों, पराक्रम, शक्ति का विचार किया जाता है।
मंगल का स्वभाव - क्रुर, आक्रामकआ क्षत्रिय, तमोगुणी,  पित्त प्रकृति आदि मंगल का स्वभाव है। 
यह तृतीय भाव व षष्ठ भाव में बली तथा दशम भाव में दिग्बली होता है।
यह चंद्र के साथ आने पर चेष्टाबली होता है।यह द्वितीय भाव में निर्बली होता है।
4. बुध-
          ये ग्रहों में राजकुमार माने जाते हैं और ये जिस ग्रह के साथ आए उनके समान शुभ या अशुभ प्रभाव देते हैं। यह व्यवसाय, ज्योतिष, चिकित्सा, कला, कानून आदि का कारक ग्रह है। इस से ही व्यक्ति की बुद्धि, विवेक आदि का अध्ययन किया जाता है।
नपुंसक, वैश्य जाति, रजोगुणी, त्रिदोष बुध का स्वभाव है। 
यह चतुर्थ भाव में निर्बली होता है। जब यह अकेला स्थित हो तो यह शुभ फल देने वाला होता है।
5. बृहस्पति -
                 ये ग्रहों के गुरु कहे जाते हैं। ये सर्वाधिक शुभ ग्रह हैं। इनसे ह्रदय शक्ति का विचार किया जाता है। इनसे संतान, पारलौकिक शक्तियों, विद्या का विचार किया जाता है। 
मोटा शरीर,  बाह्मण, सौम्य, कफ प्रकृति गुरु का स्वभाव है।
ये लग्न में दिग्बली तथा चंद्र के साथ बैठने पर चेष्टाबली होता है।
6. शुक्र -
          ये शुभ ग्रहों में से एक है। इनके द्वारा सभी प्रकार के भोगों का विचार किया जाता है। इनके द्वारा काव्य, संगीत, सांसारिक सुख, वाहन सुख, कामेच्छा का विचार किया जाता है। 
सुन्दर शरीर, स्त्री बाह्मण, कफ प्रकृति, सौम्य आदि शुक्र का स्वभाव है।
यह षष्ठ भाव में निष्फल तथा सप्तम भाव में अनिष्टकारी होता है।
7. शनि -
          यह एक पापी ग्रह में से एक है। इस के द्वारा योगाभ्यास, नौकर, आयु, विपत्ति आदि का विचार किया जाता है।
यह एक पापी ग्रह तो है परंतु इसका अंतिम फल सुखद ही होता है। यह व्यक्ति को कष्ट देकर निखारने का कार्य करता है।
पतला और लंबा शरीर, धंसी हुई आँखे, क्रुर, नपुंसक आदि शनि का स्वभाव है।
यह सप्तम भाव में दिग्बली तथा किसी वक्री ग्रह के साथ बैठकर चेष्टाबली होता है।
8. राहु -
         ये सबसे पापी ग्रह माना गया है। यह गुप्त युक्ति, कष्ट तथा त्रुटियों का कारक है। यह जहाँ बैठता है वहाँ की उन्नति को रोक देता है।
पापी, चांडाल, तमोगुणी, पित्त एवं वात की प्रवृत्ति राहु की है। 
9. केतु -
         यह एक शुभ ग्रह है परंतु राहु की दृष्टि के कारण अशुभ प्रभाव ही देता है। यह भी गुप्त शक्ति, त्रुटियों आदि का कारक होता है।
राहु एवं केतु का स्वभाव समान होता है।

इन ग्रहों के वर्णन आगे बहुत महत्वपूर्ण है।

धन्यवाद। 

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