Monday, 30 April 2018

आध्यात्म : ईश्वर और मन (भाग - 1)

                आधुनिक युग में एक ओर जहां विज्ञान प्रगति करता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आज की युवा पीढ़ी धर्म और ईश्वर के अस्तित्व पर कई प्रश्न चिन्ह लगा  रही है और इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानना चाहती हैं।
   आइए आज इस विषय पर एक गहन विचार करते हैं -

                     इस विषय को पूर्णतः समझने के लिए हमें मन और बुद्धि के विभेद को सटीक रूप से समझना होगा -

बुद्धि और मन-
              
       1. मन एक काल्पनिक वस्तु है, जिसका हमारे शरीर में कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है जबकि बुद्धि (दिमाग) हमारे शरीर का वास्तविक अंग है।

       2. मन का वेग प्रकाश की गति से भी तीव्र है अर्थात इसमें अनन्त कल्पनाएँ है, ये तो आप सभी जानते हैं
            जबकि बुद्धि अत्यंत धीमी गति से कार्य करती है अर्थात कि बुद्धि का वेग मन की तरह अपरिमित नहीं है।
      
       यही कारण है कि विज्ञान कल्पनाओं (मन) पर आधारित है ना कि बुद्धि पर।
        कहा भी गया है कि -
                 " कल्पना ही विज्ञान का आधार है। "
जैसे -
         किसी व्यक्ति ने कल्पना की कि किसी सुदूर बैठे व्यक्ति से संपर्क साधा जा सकता है, उस समय वह कल्पना वास्तविकता में संभव नहीं थी। परंतु  टेलिफ़ोन के आविष्कार ने इस कल्पना को सत्य साबित किया।

        यह आविष्कार और ऐसे ही अनेक आविष्कार केवल मन की कल्पना के कारण ही संभव हो सके।

        अतः यह तो स्पष्ट है कि जितनी भी कल्पनाएं मन द्वारा की जा सकती है, उन सबका वास्तविक अस्तित्व है।

-     क्या आप सोच सकते हैं मन तो स्वयं एक कल्पना है फिर हमें इसके अस्तित्व पर हमें संदेह क्यों नहीं होता?

ऐसा इसलिए है क्योंकि यह हमें अपने अस्तित्व का आभास कराता रहता है।
इसके अस्तित्व की सार्थकता के संबंध में तो यहां तक कहा गया है कि -
            "मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। "

आपने कभी सोचा है कि -
    जब मन का स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं है तब
मन में हार मान लेने से हार कैसे?
और मन में ठान लेने से जीत कैसे हो सकती है?

ऐसा इसलिए है क्योंकि मन अन्तरात्मा की ध्वनि है जो हमें प्रेरित करती है।
जैसे -
       किसी आविष्कार के लिए, जो कि बुद्धि के बल के परे है, हमें मन ही प्रेरित करता है।
       इसी तरह, किसी सरकारी नौकरी को प्राप्त करने के लिए हमें शक्ति मन के द्वारा ही प्राप्त होती है, क्योंकि वहां बुद्धि की आवश्यकता तो है परंतु केवल बुद्धि से नौकरी प्राप्त करना संभव नहीं है, जब तक आपमें मानसिक आत्म विश्वास ना हो।

अतः अब आप समझ गए होंगे कि
                  मन की कल्पनाओं को बुद्धि के तर्कों के द्वारा समझना संभव नहीं है।

अब, यदि ईश्वर को आप मन की कल्पना भी मानें तो भी विज्ञान के अनुसार भी ईश्वर का अस्तित्व होगा।
      

Sunday, 29 April 2018

नवग्रह

जैसा कि हम अपने पिछले लेख में बता चुके है कि प्रत्येक राशियों का स्वामित्व किसी ग्रह के अन्तर्गत आता हैं। इस लेख में हम इन नवग्रहों के बारे में जानेंगे।
1. सूर्य -
            ये ग्रहों के राजा कहे जाते हैं। ये सबसे कम पापी ग्रह हैं। इनके पास सबसे ज्यादा नैसर्गिक बल है। मेरूदंड, आत्मा, नेत्र, ह्रदय को ये प्रभावित करते हैं। सूर्य इन अवयवों के रोग प्रदान करते हैं। 
सूर्य का स्वभाव है - लाल रंग, क्षत्रिय प्रकृति, सत्वगुण प्रधान,अग्नि तत्व,  पित्त प्रकृति आदि।
सूर्य लग्न से दशम भाव में दिग्बली तथा मकर राशि से छह राशियों तक चेष्टाबली रहता है।
विशेष -
      
1. अब शायद आप समझ ही गए होंगे कि मकर संक्रांति विशेष क्यों होती है?
2. अब आप यह भी समझ गए हैं कि सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है?
3. सूर्य नमस्कार का कारण भी आप समझ ही गए होंगे।
2. चंद्र -
          ये शुभ ग्रहों में से एक है। यह मन, चित विकार, उदर, श्लेषमा, माता, मष्तिष्क आदि का स्वामित्व रखता है। जलीय रोग, मस्तिष्क रोग, पीनस रोग आदि का कारक ग्रह है।
यह चतुर्थ भाव में भावबली होता है तथा मकर राशि से छह राशि तक चेष्टाबली होता है
विशेष -
1. कृष्णपक्ष की षष्ठी से शुक्लपक्ष के दशमी तक चंद्र क्षीण तथा पापी ग्रह माना गया है। यह शुभ शुक्लपक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक माना जाता है।
3. मंगल -
          ये ग्रहों के सेनापति कहे गये हैं और ये एक पापी ग्रह हैं। इनके द्वारा धैर्य, छोटे भाई बहनों, पराक्रम, शक्ति का विचार किया जाता है।
मंगल का स्वभाव - क्रुर, आक्रामकआ क्षत्रिय, तमोगुणी,  पित्त प्रकृति आदि मंगल का स्वभाव है। 
यह तृतीय भाव व षष्ठ भाव में बली तथा दशम भाव में दिग्बली होता है।
यह चंद्र के साथ आने पर चेष्टाबली होता है।यह द्वितीय भाव में निर्बली होता है।
4. बुध-
          ये ग्रहों में राजकुमार माने जाते हैं और ये जिस ग्रह के साथ आए उनके समान शुभ या अशुभ प्रभाव देते हैं। यह व्यवसाय, ज्योतिष, चिकित्सा, कला, कानून आदि का कारक ग्रह है। इस से ही व्यक्ति की बुद्धि, विवेक आदि का अध्ययन किया जाता है।
नपुंसक, वैश्य जाति, रजोगुणी, त्रिदोष बुध का स्वभाव है। 
यह चतुर्थ भाव में निर्बली होता है। जब यह अकेला स्थित हो तो यह शुभ फल देने वाला होता है।
5. बृहस्पति -
                 ये ग्रहों के गुरु कहे जाते हैं। ये सर्वाधिक शुभ ग्रह हैं। इनसे ह्रदय शक्ति का विचार किया जाता है। इनसे संतान, पारलौकिक शक्तियों, विद्या का विचार किया जाता है। 
मोटा शरीर,  बाह्मण, सौम्य, कफ प्रकृति गुरु का स्वभाव है।
ये लग्न में दिग्बली तथा चंद्र के साथ बैठने पर चेष्टाबली होता है।
6. शुक्र -
          ये शुभ ग्रहों में से एक है। इनके द्वारा सभी प्रकार के भोगों का विचार किया जाता है। इनके द्वारा काव्य, संगीत, सांसारिक सुख, वाहन सुख, कामेच्छा का विचार किया जाता है। 
सुन्दर शरीर, स्त्री बाह्मण, कफ प्रकृति, सौम्य आदि शुक्र का स्वभाव है।
यह षष्ठ भाव में निष्फल तथा सप्तम भाव में अनिष्टकारी होता है।
7. शनि -
          यह एक पापी ग्रह में से एक है। इस के द्वारा योगाभ्यास, नौकर, आयु, विपत्ति आदि का विचार किया जाता है।
यह एक पापी ग्रह तो है परंतु इसका अंतिम फल सुखद ही होता है। यह व्यक्ति को कष्ट देकर निखारने का कार्य करता है।
पतला और लंबा शरीर, धंसी हुई आँखे, क्रुर, नपुंसक आदि शनि का स्वभाव है।
यह सप्तम भाव में दिग्बली तथा किसी वक्री ग्रह के साथ बैठकर चेष्टाबली होता है।
8. राहु -
         ये सबसे पापी ग्रह माना गया है। यह गुप्त युक्ति, कष्ट तथा त्रुटियों का कारक है। यह जहाँ बैठता है वहाँ की उन्नति को रोक देता है।
पापी, चांडाल, तमोगुणी, पित्त एवं वात की प्रवृत्ति राहु की है। 
9. केतु -
         यह एक शुभ ग्रह है परंतु राहु की दृष्टि के कारण अशुभ प्रभाव ही देता है। यह भी गुप्त शक्ति, त्रुटियों आदि का कारक होता है।
राहु एवं केतु का स्वभाव समान होता है।

इन ग्रहों के वर्णन आगे बहुत महत्वपूर्ण है।

धन्यवाद। 

Saturday, 28 April 2018

ज्योतिष : राशियां और स्वभाव

सभी ग्रह अंतरिक्ष में एक वृत्ताकार कक्षा में चक्कर लगाते हुए प्रतीत होते हैं और प्रत्येक ग्रह की कक्षा को बारह बराबर भागों में विभाजित करने पर प्रत्येक भाग को ज्योतिष में राशि नाम दिया गया है।
      वृत्ताकार भाग को 12 बराबर भागों में विभाजित करने पर प्रत्येक भाग 30 अंश का होगा। इसलिए एक राशि 30 अंश की होगी।
     ये राशियां इस प्रकार हैं -
1. मेष
2. वृषभ
3. मिथुन
4. कर्क
5. सिंह
6. कन्या
7. तुला
8. वृश्चिक
9. धनु
10. मकर
11. कुंभ
12. मीन

  आइए जानते हैं इनके स्वभाव के बारे में -

1. मेष राशि -
                    इस राशि के अधिपति मंगल हैं। इस राशि वाले जातक में मेहनत तथा अपने लक्ष्य को हासिल करने की भूख होती है। इस राशि के लोग गुस्सैल तथा थोड़ी जल्दबाजी करने वाले होते हैं। इनके लिए शुभ रंग लाल एवं पीला है। इनके लिए शुभ दिन - रविवार, मंगलवार तथा गुरुवार है।

2. वृषभ राशि -
                  इस राशि के अधिपति शुक्र है। इस राशि के जातक बैल की तरह अत्यंत कर्मनिष्ठ होते हैं परंतु
बुद्धि का प्रयोग सोच समझ कर नहीं करते हैं।
    इनका मन अत्यंत मजबूत होता है व स्वभाव से चंचल होते हैं। इनके लिए शुभ रंग श्वेत है तथा शुभ दिन - बुधवार, शुक्रवार व शनिवार होते है।

3. मिथुन राशि -
                  इस राशि के अधिपति बुध है। इस राशि के जातक अत्यंत बुद्धिमान और स्वभाव से कुछ भोले होते हैं। देखा भी गया है कि गणित और वाणिज्य में इनकी विशेष रुचि होती है। ये वाणी के धनी होते हैं।
   शुभ रंग हरा है और शुभ दिन - बुधवार, शनिवार और
शुक्रवार होते हैं।
 
4. कर्क राशि -
                 इस राशि के अधिपति चंद्र है। इस राशि के जातक अत्यंत संवेदनशील, सौम्य स्वभाव, दयालु और दूसरों की बातों में जल्दी ही आने वाले होते हैं।
     इनके लिए शुभ रंग श्वेत है तथा शुभ दिन - सोमवार, मंगलवार तथा गुरुवार है।

5. सिंह राशि -
               इस राशि के अधिपति सूर्य है। इस राशि के जातक स्वतंत्र विचारधारा, उग्र, तेजस्वी और कुछ आलसी स्वभाव के होते हैं। इनका चेहरा कुछ लालिमा लिए हुए होता है।
  शुभ रंग - लाल, पीला तथा ताम्र है व शुभ दिन - रविवार, मंगलवार और गुरुवार है।

6. कन्या राशि -
               इस राशि के अधिपति बुध है। इस राशि के जातकों में प्रबंधन की उच्च स्तरीय क्षमता पायी जाती है, अतः ये अधिकतर व्यवसाय के क्षेत्र में पाये जाते हैं।
इनके लिए शुभ रंग नीला, हरा और श्वेत है। शुभ दिन - शनिवार, शुक्रवार तथा बुधवार है।

7. तुला राशि -
                इस राशि के अधिपति शुक्र है। इस राशि के जातक अत्यंत सामंजस्य स्थापित करने वाले होते हैं। ये जातक प्राय महान कलाकार होते हैं। इनके लिए शुभ रंग नीला, हरा और श्वेत है। शुभ दिन - शुक्रवार, शनिवार तथा बुधवार होता है।

8. वृश्चिक राशि -
               इस राशि के अधिपति मंगल है। इस राशि के जातक स्वभाव से अत्यंत क्रोधी, उग्र तथा कटु वाणी के होते हैं। ये प्रयत्नशील और मजबूत इरादे वाले होते हैं। इनके लिए शुभ रंग लाल, पीला है। शुभ दिन - मंगलवार, गुरुवार है।

9. धनु राशि -
            इस राशि के अधिपति बृहस्पति है। इस राशि के जातक स्वभाव से सौम्य व ज्ञानी होते हैं।ये लक्ष्य के प्रति सचेत होते हैं। इनके लिए शुभ रंग - लाल और पीला है तथा शुभ दिन - रविवार, गुरुवार और मंगलवार होते हैं।

10. मकर राशि -
               इस राशि के अधिपति शनि है। इस राशि के जातक अत्यंत रहस्यमयी तथा स्वभाव से आलसी होते हैं। ये काफी आध्यात्मिक भी हो सकते हैं।
      शुभ रंग - काला और नीला  तथा शुभ दिन - शनिवार, शुक्रवार और बुधवार है।

11. कुंभ राशि -
                 इस राशि के अधिपति शनि है। इस राशि के जातक सभी परिस्थिति में समान, विद्वान और दृढ़ संकल्प वाले होते हैं।
        शुभ रंग - काला और नीला रंग।
        शुभ दिन - शनिवार, शुक्रवार और बुधवार।

12. मीन राशि -
                 इस राशि के अधिपति बृहस्पति है।इस राशि के जातक अपने लक्ष्य के प्रति भ्रमित रहते हैं और स्वभाव भी अस्थिर होता है। परंतु ये विद्वान और दयालु प्रवृत्ति के होते हैं।
         शुभ रंग - पीला, लाल और ताम्र रंग है तथा शुभ दिन - गुरुवार, मंगलवार और रविवार है।

   इन सभी राशियों के अधिपति किसी ना किसी तत्व को निरूपित करते हैं, जिनका जातक के जीवन में अत्यधिक महत्व होता है।
आशा है कि ये आपको पसंद आया होगा।
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आगे हम,  इन राशिपतियों का स्वभाव व
नवग्रह के कारकत्व के बारे में जानेंगे।

कुंडली विश्लेषण के लिए हमें इस
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भुमिका :-ज्योतिष एक महत्वपूर्ण विषय


हमारे प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने प्रत्येक व्यक्ति का भविष्य जानने और उनके भविष्य को सुखद बनाने के लिए एक परिकल्पना की और वही परिकल्पना आज वैदिक ज्योतिष शास्त्र के नाम से जानी जाती है।
इस विषय में उन्होंने कहा कि हमारा भविष्य नवग्रह, बारह राशियाँ और सत्ताईस नक्षत्रों पर आधारित है।
आज भी विज्ञान भूत व भविष्य जानने के लिए प्रयासरत है और हमारे प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने इस विषय पर बता चुके थे। 
अब शायद आप समझ ही गए होंगे कि हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि कितने विद्वान थे जो एक परिकल्पना से ही व्यक्ति का भविष्य बताने में समर्थ थे।
आज भी ज्योतिषियों ने कई बार लोगों को उनके भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताकर तथा उनका समाधान बताया है।
ज्योतिष शास्त्र भविष्य जानने के लिए ही नहीं बल्कि भविष्य को बेहतर बनाने के लिए है।
इस विषय से ही व्यक्ति किस विशेष कार्य के लिए बना है, वह भविष्य में क्या करेगा, वह किस विषय में प्रसिद्ध होगा, उसका भविष्य कैसा होगा ऐसे ही सभी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ही ज्योतिष शास्त्र का निर्माण किया गया है।
इस विषय में व्यक्ति के जन्म समय, जन्म दिन, जन्म स्थान के माध्यम से व्यक्ति की कुंडली बनाई जाती है और उससे भविष्यवाणी की जाती है।

शरीर के तिल से जाने अपने बारे में

शरीर के तिल से जाने अपने बारे में - 1. यदि चेहरे के दाहिने भाग में काला अथवा लाल तिल हो तो व्यक्ति सम्पन्नता और समृद्धि से परिपू...