हमने पिछले लेख में जाना कि भावों की गणना कैसे करें, अब इस लेख में हम इन भावों की चर्चा करेंगें।
आइए इस चर्चा को शुरू करतें है -
प्रथम भाव - इस भाव को लग्न भी कहा जाता है।इस भाव के द्वारा जातक का स्वभाव, शारीरिक स्थिति, आकृति, शारीरिक चिह्न, जाति, मस्तिष्क का विचार किया जाता है। लग्नेश की स्थिति द्वारा जातक की उन्नति - अवनति का विचार किया
जाता है।
द्वितीय भाव - इस भाव को धन भाव कहा जाता है। इस भाव से वाणी, गायन, सौन्दर्य, कुल कुटुम्ब, आँख, कान आदि का विचार किया जाता है।
तृतीय भाव - इसे पराक्रम या सहज भाव भी कहा जाता है। इस भाव से छोटे भाई बहन, पराक्रम, शौर्य, धैर्य, श्वास आदि का विचार किया जाता है।
चतुर्थ भाव - इसे सुख भाव या मातृ भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक के वाहन, भौतिक सुख, माता,जमीन जायदाद, का विचार किया जाता है।
पंचम भाव - इसे संतान भाव अथवा विद्या भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक की बुद्धि, विनय, नीति, संतान, देवभक्ति आदि पक्षों का विचार किया जाता है।
षष्ठम भाव- इसे रिपु, रोग, ऋण भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक के शत्रु, रोग, ऋण, मामा पक्ष का विचार किया जाता है।
सप्तम भाव - इसे जाया (पत्नी) भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक की पत्नी, व्यवसाय, मित्र, आदि का विचार किया जाता है।
अष्टम भाव - इस भाव के द्वारा जातक की आयु, मृत्यु, मृत्यु के कारण, चिन्ताएँ आदि का अध्ययन किया जाता है।
नवम भाव - इस भाव को भाग्य भाव का कहा जाता है। इस भाव से पुण्य, दान, भाग्य, पिता, धर्म आदि का विचार किया जाता है।
दशम भाव - इस भाव को कर्म भाव कहा जाता है। इस भाव से कर्म, प्रभुत्व, सम्मान, नेतृत्व आदि का विचार किया जाता है।
एकादश भाव - इस भाव को लाभ भाव या आय भाव कहा जाता है। इस भाव से मनोकामना पूर्ति, लाभ, जातक की आय, आदि का अध्ययन किया जाता है।
द्वादश भाव - इस भाव को व्यय भाव या मोक्ष भाव कहा जाता है। इस भाव से जातक के व्यय, व्यसन, बाहरी संबंध का विचार किया जाता है।
इस प्रकार हमने कुंडली के सभी भावों का अध्ययन किया (कुंडली में इन भावों की स्थिति देखने के लिए कुंडली का रेखाचित्र देखें) ।
आशा है कि आपको यह पसंद आया होगा।
धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment