जैसा कि हमने पिछले लेख में जाना कि भावों के द्वारा किन किन बातों का विचार किया जाता है।यदि आप भावों को समझ गये तो इस लेख को समझना आपके बायें हाथ का खेल होगा।
इस लेख को समझने के लिए आपको सर्वप्रथम सभी ग्रहों को समझना होगा जिसके लिए आप हमारा नवग्रहों से संबंधित लेख दे सकते हैं।
आइए बात करते हैं उन सुत्रों की जिसकी सहायता से आप आसानी से भविष्यवाणी कर सकेंगे -
हम इसे आपको सर्वप्रथम एक उदाहरण की सहायता से समझायेंगे और उसके पश्चात सुत्र समझायेंगे।
हमने आपको समझाने के लिए एक ग्रह की स्थिति का विवेचन किया है।
जैसे इस कुंडली में लग्न में स्वराशि का मंगल स्थित है। अब आप हमारे पिछले लेख को पढ़कर यह जान सकते हैं कि प्रथम भाव से जातक का स्वभाव, रंग रुप , शारीरिक स्वरुप आदि देख सकते हैं।
अब यदि मंगल लग्न गत है तो मंगल की प्रकृति( जैसे क्रोधी, लालिमायुक्त बलवान शरीर) जो आप हमारे नवग्रह वाले लेख में देख सकते हैं।
अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि जातक क्रोधी,अभिमानी, शरीर लालिमायुक्त और बलवान होगा।
अब हम बात करते हैं जब लग्न में कोई ग्रह स्थित नहीं है और न ही कोई ग्रह लग्न को देखता है(दृष्टियों की बात हम आगे करेंगे) ।
इस स्थिति में आप को केवल उस भाव की राशि के स्वभाव की सहायता से भविष्यवाणी करनी होगी। आप वह हमारे राशि एवं स्वभाव के लेख के माध्यम से देख सकते हैं।
एक उदाहरण के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ -
जैसे एक जातक का लग्न सिंह है तो आप उस व्यक्ति के बारे में जान सकते हो कि वह व्यक्ति सिंह के समान(सरलता से समझने के लिए) ही आलसी परन्तु जब परिस्थिति का सामना करना हो तो अडिग होता है। इस राशि का स्वामी सूर्य है अतः जातक सूर्य के समान तेजस्वी, सर्वाधिक प्रभुत्वशाली, स्वाभिमानी होगा।
इस तरह हम भाव में स्थित ग्रह, राशि और दृष्टि के आधार पर भविष्यवाणी कर सकते हैं।
आगे के लेख में हम एक और सुत्र की चर्चा करेंगे।
आशा है कि आप को लेख पसंद आया है।
धन्यवाद।
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