कुछ ग्रह यदि कुंडली में एक निश्चित स्थान पर होते हैं तो वे उस कुंडली के जातक को लाभ देते हैं। इन ग्रहों का यहाँ बैठना ही अपने आप में राजयोग है।
आइए जानते हैं कि कौनसे ग्रह कहाँ अत्यंत शुभ फलदायी होते हैं -
1. सूर्य -
सूर्य यदि किसी जातक की कुंडली में प्रथम अर्थात् लग्न, नवम अथवा दशम भाव में स्थित है तो यह सूर्य अत्यंत ही लाभदायक हो सकता है। लग्न, नवम और दशम भाव में सूर्य कारक माना जाता है। जब लग्नगत सूर्य हो तो वह जातक को महापराक्रमी राजा के समान बना देता है। माना जाता है कि रावण के लग्न में ही सूर्य सिंह राशि में स्थित था। नवमस्थ सूर्य व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि करता है। केवल सूर्य के नवमस्थ होने से ही व्यक्ति महाभाग्यशाली कहलाता है। दशमभाव गत सूर्य व्यक्ति को राजपद दिलाने में अकेला ही समर्थ होता है। यदि सूर्य दशमभाव से किसी भी प्रकार का संबंध बना ले तो व्यक्ति को राजकार्य तक पहुंचाने के लिए काफ़ी है।
2. चन्द्र -
ऐसी बहुत ही कम कुुंडलियाँ होती है जिसमेंं चन्द्र पीड़ित न हो। इस कारण ही शिवजी की पूजा प्रत्येक व्यक्ति को करने की सलाह दी जाती है। चंद्र जब लग्न से चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में हो तो यह चन्द्र की अनुुकूल स्थितियों में से एक है। परन्तु वह अकेला नहीं होना चाहिए। जब चन्द्र चतुर्थ भावगत होता है तो वह व्यक्ति को सुख समृद्धि देने वााला होता है परन्तु यह उस समय नुकसानदेह हो सकता है जब चन्द्र पीड़ित हो। इस समय व्यक्ति को सुख तो मिलता है पर वह उसेे खराब मान लेता है। जब चन्द्र दशमस्थ होता है तो वह अपनी सोलह कलाओं के कारण जातक को सभी कलाओं में कुशल बनाता है। परन्तु यदि चन्द्र पीड़ित है तो कार्य क्षेत्र में भटकाव ला देता है।
3. मंगल -
मंगल जब लग्न, षष्ठ अथवा दशम भाव में हो तो यह भी राजयोग के समान फल देेने वाला होता है। लग्न गत और दशम भाव गत मंगल व्यक्ति को राज कार्यों में ले जाता है। षष्ठ भाव गत मंगल के अनेक लाभ हैं तो नुकसान भी है परन्तु यह यहाँ विशेष रूप से कारक होता है। षष्ट भाव में स्थित मंगल व्यक्ति को शत्रुहन्ता बनाता है। परन्तु यह मामा पक्ष के लिए नुुकसानदेह होता है। षष्ट भाव गत मंंगल का जातक का किसी पर क्रोध करना दूूसरे के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
4. बुध -
बुध यदि लग्न से किसी भी केन्द्र में स्थित हो तो यह बुध की काफी अच्छी स्थिति है। जब बुध लग्नगत होता है तो वह जातक को तीक्ष्ण बुुद्धि बनाता है। इसके अतिरिक्त बुुध का चतुर्थ भाव में होना भी अपने आप में ही राजयोग है। बुध जब द्वितीय भाव में स्थित होताा है तो वह व्यक्ति प्रसिद्ध नेता, वक्ता, गायक और अभिनेता बन सकताा है। परन्तु यदि बुध के कई लाभ हैं तो नुकसान भी। हम इस पर अगामी किसी लेख में बतायेंगे।
5. बृहस्पति -
जब बृहस्पति किसी भी केंद्र में स्थित होता है तो वह कुंडली के समस्त दोषों को मिटाने के लिए अकेला ही समर्थ होता है। इसके अतिरिक्त जब बृहस्पति षष्ठ भाव में स्थित होता है तो यह अत्यंत श्रेष्ठ स्थिति है। बृहस्पति षष्ठ भाव में महान नायक अमिताभ बच्चन, विराट कोहली जैसे महान व्यक्तियों की कुंडली में देखने को मिला है।
6. शुक्र -
शुक्र विशेेषतया जब द्वादश भाव में स्थित हो तो यह बहुत ही अच्छी स्थिति है। बाहरवाँ भाव भोग का भाव होता है तथा शुक्र भोग का ही कारक है अतः शुक्र का इस भाव में बैठना व्यक्ति को अतुलित संपदा दे सकता है। शुक्र यदि किसी भी केेंद्र में स्थित है तो यह भी अत्यंत श्रेष्ठ होता है विशेष रुप से जब शुक्र सप्तम भाव गत हो परन्तु अकेला नहीं होना चाहिए।
शेष ग्रहों की चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।
साधारणत यहाँ ग्रहों के जिन जिन भावों का उल्लेख किया गया है वे वहाँ पर अकेले होने पर कुछ नुकसान देते हैं।
आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।
धन्यवाद।।