Thursday, 31 May 2018

अगर है यह राजयोग तो आप प्राप्त करेंगे प्रत्येक सफलता





यदि आपकी कुंडली में यह राजयोग है तो आप एक सिंह के समान प्रत्येक  क्षेत्र में सफलता मिलेगी और आपको सभी सुख सुविधाओं का भोग निश्चित रूप से ही मिलेगा।   


हम चर्चा कर रहे हैं गजकेसरी राजयोग की। 


इस राजयोग का निर्माण कैसे होता है - 

 केन्द्रस्थिते देवगुरौ शशांकाद् योगस्तदाहुर्गजकेसरीति। दृष्टे सितार्येन्दुसुते शशांके नीचस्तहीनैर्गजकेसरीति।।  

 बृह्तपाराशर होरा शास्त्र के अनुसार जब देवगुरु बृहस्पति चंद्रमा से केन्द्र में हो तब गजकेसरी राजयोग घटित होता है। इसके अतिरिक्त यदि अन्य कोई शुभ ग्रह जैसे शुक्र या बुध भी हो तब भी यह राजयोग घटित होता है ।

:- परन्तु इसमे यह शर्त है कि चंद्रमा तथा योगकारक ग्रह नीच अथवा अस्त नहीं होना चाहिए। 


नीच ग्रहों के बारे में जानने के लिए - https://arastrology.blogspot.com/2018/05/6.html?m=1

इस राजयोग के लाभ - 

                                              गजकेसरिसंजातस्तेजस्वी धनवान् भवेत्।
मेधावी गुण सम्पन्नो राजप्रियकरो भवेत्।। 

अर्थात् गजकेसरी राजयोग में उत्पन्न जातक तेजस्वी, धनवान, मेधावी, प्रत्येक  गुणों से सम्पन्न और राज्य का प्रिय होता है ( अर्थात् अपने राज्य का ख्यातिप्राप्त व्यक्ति होता है) ।

क्या आपकी कुंडली में भी यह राजयोग घटित होता है, जानने के लिए हमें कमेंट बॉक्स में अपना जन्मदिन  जन्मस्थान, जन्मसमय और नाम लिख भेजें (यह सेवा निशुल्क है) । 

इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करें। 

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धन्यवाद।। 





Wednesday, 30 May 2018

आज का राशिफल ( 1 june 2018) today's horoscope




आइए जानते हैं कि आपका आज का दिन कैसा रहने वाला है। आज आपकी राशि पर आज के ग्रह - गोचर का क्या प्रभाव पड़ेगा।


मेष राशि -
                  आज का आपका दिन सुखमय व्यतीत होगा। व्यापार में लाभ की संभावना है। मन में कुुुछ अशांति रह सकता है। आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेेगा। स्वभाव में शांति बनाए रखने का प्रयास करें और किसी के साथ झगड़ा नहीं करें। हनुमानजी की आराधना करें, दिन शुभ व्यतीत होगा।







वृषभ राशि - 
                   आज आपमें आत्मविश्वास की पूर्णता रहेगी। आज आप किसी भी परीक्षा में सफल हो सकते  हैंं। धन लाभ के योग हैं। शत्रुओं की पराजय होगी। दिन की शुरुआत माता दुर्गा की आराधना से करें । दिन अच्छा बीतेगा।








मिथुन राशि - 
                 मन कुछ विचलित रह सकता है। आपका समय अनुकूल है। मन में कुुुछ गलत विचाारों का बोलबाला रह सकताा है। आप आत्मविश्वास से भरे रहेंगे। वैैवाहिक जीवन में मतभेदों की संभावना है। दिन की शुरुआत गणेश जी के मंदिर से करें, दिन शुभ जायेगा।







कर्क राशि - 
                आज आपको स्वास्थ्य के देखभाल की पूर्ण आवश्यकता है। आज आपको स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। गुस्से पर नियंत्रण रखें अन्यथा हानि की संभावना है। शत्रुओं से सावधान रहें। वैवाहिक मतभेद संभव हैै। भगवान शिव की पूजा करें दिन शुभ गुजर सकता है।






सिंह राशि - 
                संतान संबंधी चिंता की संभावना है। कार्य क्षेत्र में उन्नति की संभावना है। दिन सुखमय व्यतीत होगा । शत्रु परास्त होंगे। रोग एवं ऋण से मुक्ति मिलने की संभावना है। जमीन जायदाद संबंधी फायदा भी हो सकता है।







कन्या राशि - 
              माता संबंधी चिंता रह सकती है। भाग्य अनुकूल स्थिति में है । नयाा उद्यम प्रारंभ कर सकते हैंं। धन प्रराप्ति के भी योग हैं। संतान संबंध में चिंता रह सकती है।






तुला राशि - 
              स्वभाव खुशनुमा रहेगा। भाग्य का सहयोग मिलेगा परंतु माता के स्वाास्थ्य में प्रतििकूलता रह सकती है। संतान पक्ष से लाभ होगा। गुुस्से पर काबू पाने का प्रयास करें। कुुुल मिलाकर यह दिन आपके लिए शुभ साबित हो सकता है।







वृश्चिक राशि - 
             भाग्य आपके पक्ष में करवट ले रहा है। आपका आत्मविश्वास अभी चरम सीमा पर है । किसी भी परीक्षा में सफलता के योग बन रहे हैं । धन संबंधी नुकसान हो सकता है अतः कहीं धन न लगाएं। हनुमान जी की पूजा करें।






धनु राशि - 
           मन विचलित रहेगा। किसी गलत काम करने से बचें। आँख और कान संबंधी समस्या हो सकती है। शत्रु परास्त होगें। वैवाहिक जीवन में कटुुता आ सकती है अतः सावधानी रखें ।धन संपदा का नुकसान हो सकता है। किसी नए काम में धन खर्च न करें।







मकर राशि - 
             यात्रा के योग बन रहे हैं। अपने गुस्से पर नियंत्रण रखें। वैवाहिक जीवन में कठिनाई आने की संभावना है। धन हानि के योग बन रहे हैं। संतान संबंधी चिंता रह सकती है। शत्रुओं से सावधान रहें। हनुमान जी की पूजा करें।
           

कुम्भ राशि - 
           आज का आपका दिन सुखमय व्यतीत होगा। संतान पक्ष से लाभ हो सकता है। प्रबल लाभ के योग बन रहे हैं। शत्रु पराजित होंगे। कुल मिलाकर आज का दिन आपके लिए शुभ रहेगा।






   

मीन राशि - 
             कार्यक्षेत्र में भटकाव संभव है। भाग्य का सहयोग मिलेगा। आय के साधनों में वृद्धि होगी। संतान पक्ष की चिंंता रह सकती है। विद्यार्थियों का पढाई में मन नहीं लगेगा। सोच समझ कर धन खर्च करें। 




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धन्यवाद।

बुध का राशि परिवर्तन - इन दो राशियों को मिलेगी हर सफलता




बुध का राशि परिवर्तन इन दो राशियों को सभी सफलताएँ प्रदान करेगा। क्या आप भी इनमें से एक हैं?


 बुध ने मेष राशि से वृष राशि में मई की सत्ताईस तारीख को प्रवेश किया है। इस राशि परिवर्तन से जिन दो राशियों को भरपूर फायदा होगा वे निम्न हैं - 






वृषभ राशि -    
              बुध के इस राशि परिवर्तन से सबसे अधिक फायदा वृषभ राशि के जातकों को होने वाला है। वृृषभ राशि के जातकों केे लग्न में ही सूर्य बुुध का बुधादित्य योग घटित होगा। वहीं राशीश के साथ बुुध का परिवर्तन राजयोग  घटित होगा। गोचर के लग्न में ही सूर्य का तेज और बुध की बुद्धि जातक को प्रत्येक परीक्षा में सफल करने योग्य है। वहीं राशीश धन भाव में बैठकर धन लाभ के प्रबल योग भी बना रहा है।







वृश्चिक राशि -
             बुध का राशि परिवर्तन वृश्चिक राशि वालों के लिए भी खुशियों की सौगात ले कर आया है। सप्तम भाव में स्थित सूर्य और बुध का योग की इस राशि के लग्न पर दृष्टि पडेगी जिससे सूर्य के समान स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास और बुध की बुद्धि से किसी भी कठिन से कठिन परीक्षा को भी आराम से उत्तीर्ण कर सकते हैं। वहीं राशीश मंगल उच्च के होकर मकर रााशि में पराक्रम भाव में चल रहे हैं जो एक और इनके लिए फायदेमंद बात है। 





इस तरह बुध का ये राशि परिवर्तन वृषभ और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए अत्यंत ही शुभ रहने वाला है।

आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।

धन्यवाद। 

Thursday, 17 May 2018

कुंडली देखना सीखें भाग 7


इस लेख में हम आपको प्रत्येक ग्रह की मूलत्रिकोण राशियों के बारे में बतायेंगे।
मूलत्रिकोण राशि में स्थित ग्रह बली तो होता है परन्तु उतना नहीं जितना कि ग्रह अपनी उच्च राशि में होता है। अतः अधिक फलदायी ग्रह सर्वप्रथम उच्च राशिगत एवं उसके पश्चात मूलत्रिकोण होता है।
आप ग्रहों की उच्च राशियों के बारे में जानने के लिये हमारा पिछला लेख देख सकते हैं।
आइए जानते हैं मूलत्रिकोण राशियों के बारे में -
1. सूर्य सिंह राशि में 1अंश से 20 अंश तक मूलत्रिकोण स्थिति माना जाता है।
2. चंद्र वृषभ राशि में 4 अंश से 30 अंश तक मूलत्रिकोणस्थ होता है।
3. मंगल मेष राशि में 15 अंश तक, बुध कन्या राशि में
16 से 30 अंश तक, बृहस्पति धनु राशि में 13 अंश तक, शुक्र तुला राशि में 10 अंश और शनि कुम्भ राशि में 20 अंश तक मूलत्रिकोणस्थ माना जाता है।
4. राहु और केतु क्रमशः कर्क तथा मकर राशि में मूलत्रिकोणस्थ माने गए हैं।
इस प्रकार ये मूलत्रिकोणस्थ ग्रह प्रभाव दर्शाते तो हैं लेकिन उच्च के ग्रह से कम।
इस प्रकार हमने नवग्रहों की मूलत्रिकोण राशियों की चर्चा की।
आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।
धन्यवाद।

Tuesday, 15 May 2018

कुंडली देखना सीखें भाग 6( ग्रहों की नीच राशि)



हमने पिछले लेख में ग्रहों की उच्च राशि के बारे में चर्चा की। इस लेख में हम इन नवग्रहों की नीच राशि के बारे में चर्चा करेंगे।
जब ग्रह अपनी नीच राशि में होता है तो वह अत्यल्प प्रभाव ही दर्शा पाता है जिससे वह लाभ नहीं देता है।
आइए जानते हैं ग्रहों की नीच राशि -
1. सूर्य तुला राशि में 10 अंश तक नीच का होता है।
2. चंद्र वृश्चिक राशि में 3 अंश तक नीच का होता है।
3. मंगल कर्क राशि में 28 अंश तक, बुध मीन राशि में 15 अंश तक,बृहस्पति मकर राशि में 5 अंश तक, शुक्र कन्या राशि में 27 अंश तक और शनि मेष राशि में 20 अंश तक नीच का कहा जाता है।
4. राहु, केतु क्रमशः धनु एवं मिथुन राशि में नीच के कहे गये हैं।
हम अपने अगले लेख में ग्रहों के मूलत्रिकोण राशि की चर्चा करेंगें।
आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया है।
धन्यवाद।

Monday, 14 May 2018

कुंडली देखना सीखें भाग 5 (उच्च के ग्रह)


पिछले लेख में हमने ग्रहों की दृष्टियों के बारे में चर्चा की। इस लेख में हम इन नवग्रहों की उच्च राशि के बारे में बतायेंगे।
जैसा कि हम अपने एक लेख में जान चुके हैं कि प्रत्येक भाव 30 अंश का होता है। आपके जन्म समय पर ग्रह किसी विशेष अंश एवं राशि में होता है।
यदि आपकी कुंडली में ग्रह निम्न लिखित राशियों में एक निश्चित अंश सीमा तक है तो आपके वह ग्रह उच्च का कहलायेगा।
आइए जानते हैं इन नवग्रहों की उच्च राशि के बारे में -
1. सूर्य मेष राशि में 10 अंश तक उच्च का होता है।
2. चंद्र मात्र 3 अंश तक वृषभ राशि में उच्च का होता है।
3. इसी प्रकार मंगल मकर राशि में 28 अंश तक, बुध कन्या राशि में 15 अंश तक, बृहस्पति कर्क राशि में 5 अंश तक, शुक्र मीन राशि में 27 अंश तक और शनि 20 अंश तक तुला राशि में उच्च का होता है।
4. राहु-केतु की उच्च राशि के बारे में कई मत हैं। सामान्यतः राहु मिथुन राशि में तथा केतु धनु राशि में 15 अंश तक उच्च के माने जाते हैं।
उच्च के ग्रह सर्वोच्च बली होते हैं। ये कुंडली में सर्वाधिक फलदायी होते हैं। ये सामान्यतः अपनी महादशा, अन्तर्दशा में विशेष फल देने वाले होते हैं।
यदि आप का कोई कारक ग्रह उच्च का हो तो यह आपको अत्यंत विशिष्ट फलदायी होता है। यह आपको प्रत्येक स्थिति में सफलता दिलाने की क्षमता रखता है।
क्या आप का भी कोई कारक ग्रह उच्च का है? अपने कारक ग्रहों को जानने के लिए हमारा कारक ग्रह का लेख देखें।
आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।
अगले लेख में हम इन नवग्रहों की नीच राशि के बारे में जानेंगे।
धन्यवाद।

Sunday, 13 May 2018

नियम जिसके बाद आप आसानी से भविष्यवाणी कर सकेंगे ( कुंडली देखना सीखें भाग 4)


पिछले लेख में जाना कि किसी भाव की भविष्यवाणी कैसे बताई जाती है यदि उस भाव में कोई ग्रह स्थित हो अथवा न हो।
आज हम आपको उस समय भाव की भविष्यवाणी करना बतायेंगे जब कोई ग्रह किसी भाव पर दृष्टि डाल रहा हो।
आइए जानते हैं ग्रहों की दृष्टि के बारे में -
1. सभी ग्रह अपने से सप्तम भाव को देखते हैं। जैसे यदि कोई ग्रह लग्न में हो तो वह सप्तम भाव को देखेगा। आप भावों की गणना करने के लिए हमारा कुंडली देखना सीखें का प्रथम भाग देख सकते हैं।
2. कुछ ग्रहों को विशेष दृष्टियां प्राप्त है, जो एक से अधिक भावों को देखते हैं।
- मंगल अपने से चतुर्थ, सप्तम और अष्टम भाव को देखता है।
- शनि अपने से तृतीय, सप्तम और दशम भाव को देखता है।
- बृहस्पति अपने से पंचम, सप्तम और नवम भाव को देखता है।
- राहु-केतु की दृष्टि भी बृहस्पति के समान ही होती है अर्थात वे भी अपने स्थान से पंचम, सप्तम और नवम भाव को देखते हैं।
अब आप आसानी से भाव पर ग्रहों की दृष्टियां देख सकते हैं और हमारे पिछले लेख के नियम की सहायता से किसी भी भाव की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।
धन्यवाद।

Saturday, 12 May 2018

वे सुत्र जिसके बाद आप आसानी से भविष्यवाणी कर सकेंगे ( कुंडली देखना सीखें भाग 3)


जैसा कि हमने पिछले लेख में जाना कि भावों के द्वारा किन किन बातों का विचार किया जाता है।यदि आप भावों को समझ गये तो इस लेख को समझना आपके बायें हाथ का खेल होगा।
इस लेख को समझने के लिए आपको सर्वप्रथम सभी ग्रहों को समझना होगा जिसके लिए आप हमारा नवग्रहों से संबंधित लेख दे सकते हैं।
आइए बात करते हैं उन सुत्रों की जिसकी सहायता से आप आसानी से भविष्यवाणी कर सकेंगे -

हम इसे आपको सर्वप्रथम एक उदाहरण की सहायता से समझायेंगे और उसके पश्चात सुत्र समझायेंगे।

हमने आपको समझाने के लिए एक ग्रह की स्थिति का विवेचन किया है।
जैसे इस कुंडली में लग्न में स्वराशि का मंगल स्थित है। अब आप हमारे पिछले लेख को पढ़कर यह जान सकते हैं कि प्रथम भाव से जातक का स्वभाव, रंग रुप , शारीरिक स्वरुप आदि देख सकते हैं।
अब यदि मंगल लग्न गत है तो मंगल की प्रकृति( जैसे क्रोधी, लालिमायुक्त बलवान शरीर) जो आप हमारे नवग्रह वाले लेख में देख सकते हैं।
अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि जातक क्रोधी,अभिमानी,  शरीर लालिमायुक्त और बलवान होगा।

अब हम बात करते हैं जब लग्न में कोई ग्रह स्थित नहीं है और न ही कोई ग्रह लग्न को देखता है(दृष्टियों की बात हम आगे करेंगे) ।

इस स्थिति में आप को केवल उस भाव की राशि के स्वभाव की सहायता से भविष्यवाणी करनी होगी। आप वह हमारे राशि एवं स्वभाव के लेख के माध्यम से देख सकते हैं।

एक उदाहरण के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ -

जैसे एक जातक का लग्न सिंह है तो आप उस व्यक्ति के बारे में जान सकते हो कि वह व्यक्ति सिंह के समान(सरलता से समझने के लिए)  ही आलसी परन्तु जब परिस्थिति का सामना करना हो तो अडिग होता है। इस राशि का स्वामी  सूर्य है अतः जातक सूर्य के समान तेजस्वी, सर्वाधिक प्रभुत्वशाली, स्वाभिमानी  होगा।

इस तरह हम भाव में स्थित ग्रह, राशि और दृष्टि के आधार पर भविष्यवाणी कर सकते हैं।

आगे के लेख में हम एक और सुत्र की चर्चा करेंगे।

आशा है कि आप को लेख पसंद आया है।

धन्यवाद।

Friday, 11 May 2018

कुंडली देखना सीखें भाग 2


हमने पिछले लेख में जाना कि भावों की गणना कैसे करें, अब इस लेख में हम इन भावों की चर्चा करेंगें।
आइए इस चर्चा को शुरू करतें है -


प्रथम भाव - इस भाव को लग्न भी कहा जाता है।इस भाव के द्वारा जातक का स्वभाव, शारीरिक स्थिति, आकृति, शारीरिक चिह्न, जाति, मस्तिष्क का विचार किया जाता है। लग्नेश की स्थिति द्वारा जातक की उन्नति - अवनति का विचार किया 
जाता है।

द्वितीय भाव - इस भाव को धन भाव कहा जाता है। इस भाव से वाणी, गायन, सौन्दर्य, कुल कुटुम्ब, आँख, कान आदि का विचार किया जाता है।

तृतीय भाव - इसे पराक्रम या सहज भाव भी कहा जाता है। इस भाव से छोटे भाई बहन, पराक्रम, शौर्य, धैर्य, श्वास आदि का विचार किया जाता है। 

चतुर्थ भाव - इसे सुख भाव या मातृ भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक के वाहन, भौतिक सुख, माता,जमीन जायदाद, का विचार किया जाता है।

पंचम भाव - इसे संतान भाव अथवा विद्या भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक  की बुद्धि,  विनय, नीति, संतान, देवभक्ति आदि पक्षों का विचार किया जाता है। 

षष्ठम भाव- इसे रिपु, रोग, ऋण भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक के शत्रु, रोग, ऋण, मामा पक्ष का विचार किया जाता है। 

सप्तम भाव - इसे जाया (पत्नी) भाव कहा जाता है। इस भाव के द्वारा जातक की पत्नी, व्यवसाय, मित्र, आदि का विचार किया जाता है। 

अष्टम भाव - इस भाव के द्वारा जातक की आयु, मृत्यु, मृत्यु के कारण, चिन्ताएँ आदि का अध्ययन किया जाता है। 

नवम भाव - इस भाव को भाग्य भाव का कहा जाता है। इस भाव से पुण्य, दान, भाग्य, पिता, धर्म आदि का विचार किया जाता है। 

दशम भाव - इस भाव को कर्म भाव कहा जाता है। इस भाव से कर्म, प्रभुत्व, सम्मान, नेतृत्व आदि का विचार किया जाता है। 

एकादश भाव - इस भाव को लाभ भाव या आय भाव कहा जाता है। इस भाव से मनोकामना पूर्ति, लाभ, जातक की आय, आदि का अध्ययन किया जाता है। 

द्वादश भाव - इस भाव को  व्यय भाव या मोक्ष भाव कहा जाता है। इस भाव से जातक के व्यय, व्यसन, बाहरी संबंध का विचार किया जाता है। 

इस प्रकार हमने कुंडली के सभी भावों का अध्ययन किया (कुंडली में इन भावों की स्थिति देखने के लिए कुंडली का रेखाचित्र देखें) । 

आशा है कि आपको यह पसंद आया होगा। 

धन्यवाद। 

Tuesday, 8 May 2018

मारक ग्रहों के उपाय

जैसा कि हमने पिछले लेख में जाना कि वह ग्रह जो हमें अशुभ फल देते हैं मारक कहलाते हैं। अपने मारक ग्रहों के बारे मे जानने के लिए लिये हमारा पिछला लेख देखें।

इस लेख में हम आपको मारक ग्रहों के उपाय बताएंगे जिससे आप इन ग्रहों के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं।

मारक ग्रहों से बचने के लिए इन ग्रहों के दान करें और इनकी पूजा करें।

आइए जानते हैं प्रत्येक ग्रह के दान-

सूर्य - तांबा, लाल वस्त्र, लाल चंदन, गेहूँ, गुड़, गाय आदि।

चंद्रमा - चांदी, श्वेत वस्त्र, जल से भरा हुआ घडा, कपूर आदि।

मंगल - लाल वस्त्र, गेहूँ, कनेर के पुष्प, स्वर्ण, लाल बैल आदि।

बुध - कांसा, घी, स्वर्ण, हरे वस्त्रआदि।

बृहस्पति - स्वर्ण, पीत वस्त्र, पीले रंग का अनाज, नमक आदि।

शुक्र - चावल, सुगंधित वस्तुएं, सफेद वस्त्र और वस्तुएं आदि।

शनि - कृष्ण वस्त्र, लोहा, काले अनाज, कम्बल आदि।

राहु - कृष्ण वस्त्र, कम्बल, तिल का तेल, तलवार आदि।

केतु - तिल का तेल, कम्बल, शस्त्र, बकरा आदि।

प्रत्येक ग्रह के रत्न भी दान किए जा सकते हैं।

इसके अलावा इन ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए इन ग्रहों के अधिपति की पूजा की जाती है।

चंद्र के लिए शिवजी की , बुध के लिए गणेश जी की, मंगल एवं शनि के लिए हनुमान जी की, बृहस्पति के लिए कृष्ण जी की, शुक्र के लिए माता दुर्गा की, सूर्य के लिए भगवान् सूर्य की पूजा की जाती है।

अब आप अपने मारक ग्रहों के दान करें और इनके अधिपति की पूजा करके इनके दुष्प्रभाव से बच सकते हैं (अपने मारक ग्रहों के बारे में जानने के लिये हमारा पिछला लेख देखें) ।

धन्यवाद।

आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।

Monday, 7 May 2018

वे ग्रह जो हमें सामान्यतः अशुभ फल देते हैं (मारक ग्रह)

हम अपने पिछले लेख में कारक ग्रहों को बली बनाकर उनका शुभ फल लेने के बारे में बताया। विस्तार से जानकारी के लिए हमारा पिछला लेख देखें।
आइए जानते हैं प्रत्येक लग्न के लिए मारक ग्रहों के बारे में -

1. मेष -
         शनि तथा बुध इस लग्न के लिए सबसे अधिक नुकसानदेह हो सकते हैं क्योंकि वे अशुभ स्थानों के अधिपति है ।शुक्र इस लग्न के लिए अल्प मारक है।

2. वृषभ -
         बृहस्पति तथा चंद्र इसके लिए मारक है तथा मंगल भी अशुभ होने के कारण मारक सिद्ध हो सकता है।

3. मिथुन -
         मंगल तथा सूर्य अशुभ स्थानों के अधिपति है अतः अशुभ फलदायी है। गुरु दो केंद्रों के अधिपति है अतः अशुभ फलदायी हो सकते हैं।

4. कर्क -
         शनि सर्वाधिक अशुभकारी है क्योंकि दोनों मारक भाव का स्वामी है और शुक्र तथा बुध भी अशुभकारी सिद्ध हो सकते हैं।

5. सिंह -
         शनि तथा शुक्र इस लग्न के लिए मारक सिद्ध हो सकते हैं। बुध इस लग्न के लिए सम है।

6. कन्या -
         मंगल तथा चंद्र कन्या लग्न के लिए सबसे अधिक नुकसानदेह हो सकते हैं, तथा गुरु भी दो केन्द्रों के अधिपति है अतः अशुभ फलदायी हो सकते हैं।

7. तुला -
        गुरु तथा सूर्य दो अशुभ स्थानों के अधिपति होने के कारण यह इस लग्न के लिए मारक है और मंगल कम अशुभकारी है।

8. वृश्चिक -
          शनि तथा बुध इस लग्न के लिए मारक है तथा शुक्र (नैसर्गिक शुभ ग्रह) भी केंद्र का अधिपति है अतः अशुभकारी ही है।

9. धनु -
        शनि तथा शुक्र मारक है तथा बुध भी अशुभकारी हो सकता है और यदि उसका संबंध सूर्य से हो जाये तो वह राजयोगकारी भी हो सकता है।

10. मकर -
           मंगल तथा गुरु अशुभकारी है क्योंकि वे अशुभ स्थानों के अधिपति हैं। सूर्य सम है।

11. कुम्भ -
           गुरु, चंद्र और मंगल अशुभकारी है। सूर्य भी इस लग्न के लिए मारक हो सकता है।

12. मीन -
          शनि तथा बुध इस लग्न के लिए मारक सिद्ध हो सकते हैं। सूर्य भी अशुभ स्थानों का स्वामित्व रखता है अतः यह भी अशुभ फलदायी हो सकता है।

आशा है कि आपको अपने अशुभ फलदायी ग्रह के बारे में जानकारी हो चुकी होगी।
आगे हम आपको इन मारक ग्रहों के अशुभ फल से बचने के उपाय बताएंगे।

धन्यवाद।

Friday, 4 May 2018

कारक ग्रहों को बली कैसे बनाएं

जैसा कि हमने पिछले लेख में बताया कि कारक ग्रहों की सहायता से हम अपनी जिंदगी को सुखद बना सकते हैं। परंतु कई बार कुंडली में वे कारक ग्रह बली नहीं होते जिससे की जातक को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। अतः हम अपने कारक ग्रहों को शक्ति प्रदान करके अपनी कुछ कठिनाईयों को दूर कर सकते हैं।
कारक ग्रहों को बली करने के लिए उन ग्रहों के रत्न धारण किए जाते हैं और उन ग्रहों की या ग्रहों के अधिपति देवताओं की पूजा करने से भी कारक ग्रहों को बली बना सकते हैं।

आइए बात करते हैं ग्रहों के रत्नों की -

1.माणिक्य-
                यह सूर्य का रत्न है। सूर्य को बली बनाने के लिये इसे धारण किया जाता है। इसे अनामिका अंगुली में सोने अथवा तांबे की अंगूठी में धारण किया जाता है। इसके उपरत्न को लाल गार्नेट के नाम से जाना जाता है। इसे शुक्लपक्ष के रविवार को सूर्य के होरा में धारण किया जाता है।

2. मोती -
          यह चंद्र का रत्न है। चंद्रमा को बली बनाने के लिए इसे धारण किया जाता है। मानसिक शांति के लिए भी इसे धारण कर सकते हैं परंतु कुंडली में चंद्रमा की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए। इसे कनिष्ठा अंगुली में चांदी की अंगूठी में धारण किया जाता है। इसका उपरत्न मूनस्टोन के नाम से जाना जाता है। इसे शुक्लपक्ष में सोमवार को चंद्रमा के होरा में धारण किया जाता है।

3. मूंगा -
         यह मंगल का रत्न है। मंगल को बली बनाने के लिए मूंगा धारण किया जाता है। इसे अनामिका अंगुली में सोने तथा तांबे की अंगूठी में धारण किया जा सकता है। इसका उपरत्न सममूंगी के नाम से प्रसिद्ध है। इसे शुक्लपक्ष में मंगलवार को मंगल के होरा में धारण किया जाता है।

4. पन्ना -
        यह बुध का रत्न है। बुध को बली बनाने के लिए इसे धारण किया जाता है। इसे व्यापार  के लिए भी धारण किया जा सकता है यदि कुंडली में बुध की स्थिति अच्छी है। हरा गोमेद इसका उपरत्न है। इसे स्वर्ण में कनिष्ठा अंगुली में धारण किया जाता है।

5. पुखराज -
         यह बृहस्पति देव का रत्न है। बृहस्पति को बली बनाने के लिए इसे तर्जनी अंगुली केवल और केवल स्वर्ण में धारण किया जाता है। टोपाज इसका उपरत्न है।

6. हीरा -
         यह शुक्र का रत्न है। शुक्र को बली बनाने के लिए इसे धारण किया जाता है। इसे धारण करने के अनेक मत है। यदि इसे पारिवारिक जीवन के लिए धारण किया जाये तो अनामिका एवं यदि कारकत्व के लिए धारण किया जाये तो तर्जनी में धारण किया जाता है। इसका एक प्रसिद्ध उपरत्न ओपल के नाम से जाना जाता है।

7. नीलम -
          यह शनिदेव का रत्न है। इसे सदैव ही अच्छे ज्योतिषी की सलाह पर ही पहनना चाहिए अन्यथा इसके अनेक दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसे चांदी अथवा सोने में शनिवार को मध्यमा अंगुली में धारण किया जाना चाहिए। नीली, कटेला इसका उपरत्न है।

8. गोमेद -
         यह राहू का रत्न है। इसे भी किसी अच्छे ज्योतिषी की सलाह पर ही पहनना चाहिए। इसे सोने-चाँदी अथवा अष्टधातु की अंगुठी में मध्यमा अंगुली में पहना जाता है।

9. लहसुनिया-
          यह केतु का रत्न है। इसे सोने, चांदी अथवा अष्टधातु की अंगुठी में मध्यमा में शनिवार के दिन धारण किया जाता है।

अगले लेख में हम आपके अकारक ( मारक) ग्रह की शांति के बारे में बताएंगे।

आशा है कि आपको यह लेख पसंद पाया होगा।

धन्यवाद।

ऐसे ग्रह जो हमें शुभ फल देते हैं (कारक ग्रह)



पिछले लेख में हम ने ग्रहों की शक्ति की चर्चा की। अब हम बताते हैं आप की कुंडली का कारक ग्रह कौन-सा है, जो आपको लगभग शुभ फल देने वाला होता है।
प्रत्येक लग्न कुंडली में कुछ कारक ग्रह होते हैं वो निम्न प्रकार हैं -
1. मेष लग्न में मंगल, सूर्य तथा बृहस्पति सर्वाधिक कारक ग्रह हैं। यदि ये ग्रह शुभ स्थिति में हो तो हम इनके रत्न धारण कर सकते हैं।
2. वृषभ लग्न में शनि सर्वाधिक कारक ग्रह है। इसके अतिरिक्त बुध और शुक्र भी इसमें कारक ग्रह हैं।
3. मिथुन लग्न में शुक्र, शनि तथा बुध कारक ग्रह हैं।
4. कर्क लग्न में मंगल सर्वाधिक कारक ग्रह है। इसके अतिरिक्त चंद्र और बृहस्पति भी कारक ग्रह है।
5. सिंह लग्न में मंगल सर्वाधिक कारक ग्रह है। इसके अतिरिक्त सूर्य तथा बृहस्पति भी कारक हैं।
6. कन्या लग्न में शनि, शुक्र और बुध कारक ग्रह हैं।
7. तुला लग्न में शनि सर्वाधिक कारक ग्रह है। शुक्र और बुध भी इस लग्न में कारक होते हैं।
8. वृश्चिक लग्न में मंगल, चंद्र तथा बृहस्पति कारक ग्रह हैं।
9. धनु लग्न में बृहस्पति, मंगल तथा सूर्य कारक ग्रह माने जाते हैं।
10. मकर लग्न में शुक्र सर्वाधिक कारक ग्रह है और बुध तथा शनि भी इस लग्न के लिए शुभ फलदायी है।
11. कुम्भ लग्न में शुक्र सर्वाधिक कारक है और बुध तथा शनि भी इस लग्न के लिए शुभ फल देने वाले हैं।
12. मीन लग्न में बृहस्पति, मंगल तथा चंद्र कारक ग्रह माने जाते हैं।
इस प्रकार हमने आपकी कुंडली के कारक ग्रहों की चर्चा की।
अब आप पता लगा सकते हैं कि क्या आपके कारक ग्रहों के पास बल है? ( ग्रहों की शक्ति के लिए हमारा ग्रहों की शक्ति वाला लेख देखें)
यदि आपके किसी भी कारक ग्रह के पास बल है तो आपकी जिंदगी खुशहाल हो सकती है,
और यदि नहीं तो कल हम आपको बतायेंगे कि कारक ग्रहों को बल तथा अकारक अथवा मारक ग्रहों की शांति कैसे करें?
धन्यवाद।

Thursday, 3 May 2018

जानें कौन-सा ग्रह आपकी कुंडली में सर्वाधिक बली है।

आज हम आपको बताते हैं कि आपकी कुंडली में सर्वाधिक बली ग्रह कौन-सा है जो आप पर सर्वाधिक प्रभावी है।
इसे जानने का एक अत्यंत ही सरल नियम है। इस नियम में आपकी कुंडली के ग्रहों के अंश देखे जाते हैं और इस आधार पर ही ग्रहों की शक्ति बताई जाती है। आइए जानते हैं इस बारे में -

जैसा कि हम अपने राशि वाले लेख में बता चुके हैं कि एक राशि 30 अंश की होती है ( अधिक जानने के लिए देखें - राशि और उनके स्वभाव)।

ग्रह आपके जन्म समय में एक राशि में निश्चित अंश पर होता है। इस अंश द्वारा ही उस ग्रह की शक्ति बतायी जाती है।

ग्रह की पांच अवस्थाएं मानी जाती है। ये निम्न प्रकार है -
1. बाल अवस्था
2. किशोर अवस्था
3. युवा अवस्था
4. वृद्ध अवस्था
5. मृत अवस्था

ग्रह युवा अवस्था में पूर्णतः प्रभावी होता है और मृत अवस्था में पूर्णतः अप्रभावी होता है। यह किशोरावस्था में 50% तथा बाल तथा वृद्ध अवस्था में 25% प्रभाव दर्शाता है।

यदि ग्रह विषम राशियों (1,3,5,7,9,11) में हो तो वह 0 से 6 अंश तक बाल अवस्था, 7 से 12 अंश तक किशोरावस्था, 13 से 18 अंश तक युवावस्था, 19 से 24 अंश तक वृद्धावस्था, 25 से 30 अंश तक मृत अवस्था मानी जाती है।

सम राशि(2,4,6,8,10,12) में यदि ग्रह हो तो इसका विपरीत होता है जैसे - 0 से 6 अंश तक मृत अवस्था, 7 से 12 अंश तक वृद्धावस्था, 13 से 18 अंश तक युवावस्था इति।

अब इसे मैं एक उदाहरण से समझाने की कोशिश करता हूँ।
जैसे यदि आपकी कुंडली में शनि विषम राशि में 19 अंश में हो तो वह वृद्धावस्था में कहा जायेगा और यदि सम राशि में हो तो किशोरावस्था में कहा जाता है।

यह एक आधुनिक परिपाटी है। अब हम प्राचीन परिपाटी की चर्चा करते हैं -

भृगु संहिता के अनुसार यदि ग्रह 3 से 9 अंश तक हो तो ग्रह बाल अवस्था, 10 से 22 अंश तक युवावस्था, 23 से 28 अंश तक वृद्धावस्था, 29 से 2 अंश तक मृत अवस्था माना जाता है।

अब आप अपनी कुंडली में सर्वाधिक बली ग्रह के बारे में पता लगा सकते हैं।

धन्यवाद।

Tuesday, 1 May 2018

आध्यात्म :ईश्वर और मन (भाग - 2)

इस श्रृंखला के भाग - 1 में हमने ईश्वर के अस्तित्व को तो समझ लिया परंतु
                ईश्वर का रूप, रंग, आकार, प्रकार तथा स्वभाव अभी भी हमारी बुद्धि के सामर्थ्य के परे नजर आता है।
              चूंकि ईश्वर की अनुभूति केवल मानसिक सामर्थ्य से ही की जा सकती है, बौद्धिक सामर्थ्य से नहीं।
            हो सकता है कि जब हमारे पूर्वजों ने ईश्वर रूपी इस पराशक्ति का  मानसिक अनुभव किया होगा तो उसके संबंध में हमें जानकारी देने की कोशिश में उन्होंने
इसके रूप, रंग, आकार, प्रकार तथा स्वभाव का वर्णन
अपने बौद्धिक सामर्थ्य के अनुसार किया होगा।
           
            अब हम जानते हैं कि मानसिक सामर्थ्य और बौद्धिक सामर्थ्य के मध्य में कितना अंतर है।
         
           मन की किसी भी कल्पना को शाब्दिक अर्थ देने पर उसका वास्तविक अर्थ कहीं खो जाता है।
यथा - प्रेम शब्द एक ऐसा मानसिक अनुभव है जिसको शाब्दिक अर्थ प्रेम द्वारा व्यक्त करना संभव नहीं है।

       मेरे अनुसार -
                         ईश्वर ऊर्जा रूप ही है, (जिसके द्वारा सभी वस्तुओं का निर्माण हुआ है), जिसे ना तो उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही नष्ट।
                         ईश्वर (ऊर्जा), जब संसार नहीं था, तब भी था और संसार नहीं रहेगा, तब भी रहेगा।
         जिसका ना तो आदि है और ना हि अंत।
      ऊर्जा (ईश्वर) अमर है, यह विज्ञान का भी सिद्धांत है।
        ईश्वर (ऊर्जा) कण-कण में व्याप्त है।
जिस तरह से ऊर्जा को द्रव्यमान में और द्रव्यमान को ऊर्जा में दाब तथा ताप द्वारा बदला जा सकता है, उसी तरह से ईश्वर को भी मानसिक भक्ति रूपी दाब से सगुण से निर्गुण में और निर्गुण से सगुण में परिवर्तित किया जा सकता है।
       यदि किसी भी वस्तु को मन से प्राप्त करने की चाह रखी जाए (चाहे वह ईश्वर ही क्यों न हो) , तो मेरा दावा है कि वह वस्तु प्राप्त होकर रहती है।

आपके या मेरे द्वारा ईश्वर की सत्यता अथवा असत्यता को प्रमाणित या अप्रमाणित करने से कुछ भी नहीं होने वाला।

अपनी बुद्धि को सत्यता या असत्यता में भ्रम हो सकता है परंतु मन को नहीं ।
मन सदैव सत्य ही बोलता है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद यह विज्ञान का आधार नहीं होता।

तुलसीदास जी  ने क्या खूब लिखा है कि -
                  "जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू।
                  सो तेहि मिलेहुं ना कछु संदेहू।।"
     आशा है कि आपको पसंद आया होगा।

शरीर के तिल से जाने अपने बारे में

शरीर के तिल से जाने अपने बारे में - 1. यदि चेहरे के दाहिने भाग में काला अथवा लाल तिल हो तो व्यक्ति सम्पन्नता और समृद्धि से परिपू...